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अतिशय - मूल तीन अतिशय
- चौंतीस अतिशय
श्वेताश्वतर उपनिषद् और पातंजल
योगसूत्रोंमें अतिशय -मज्झिमनिकाय आदि
बौद्ध शास्त्रो में अतिशय आजीविक ( तेरासिय ) —नंदवच्छ, किससंकिच्च
और मक्वलिगोशालतीन मुख्य नायक
— गोशाल के सिद्धांतोंका भगवती
श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायां
परिशिष्टों के विशेष शब्दोंकी सूची (११)
नास्तिक शंकराचार्य ( टि. )
- आनन्दघनजी और चार्वाकमत चार्वाकों के सिद्धांत
- चार्वाक साहित्य
ज्ञानके भेद
- प्रत्यक्ष - परोक्षकी परिभाषा
- सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष
- मतिज्ञानके ३३६ भेद
दु:षमार ( पंचम काल )
- उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी-काल — कर्मभूमि- भोग- भूमि
चतुर्थकाल में तरेसठशलाका पुरुष
- पंचम कालमें कल्कीका जन्म - प्रलय
— ब्राह्मण ग्रन्थों में चार युग - बौद्ध शास्त्रों में अनेक कल्प द्रव्यषट्क ( छह द्रव्य ) - श्वेताम्बर विद्वानोंमें कालके संबंध में मतभेद
आदि जैन ग्रंथों में उल्लेख
आधाai ( अधः कर्म )
अपूर्नबंध उत्पादव्ययधीव्य
— व प्रत्यय और परप्रत्यय उत्पादव्यय
- परस्थानपतितहानिवृद्धि
- प्रायोगिक और वैनसिक उत्पादव्यय
केवली
— विविध केवली
वैदिक ग्रंथोम केवली
- वौद्ध ग्रंथों में बुद्ध, अर्हत्
और बोधिसत्वकी कल्पना
केवलीस मुद्धात
- जैन आचार्यों में मतभेद
- उपनिषदोंको आत्मव्यापकतासे
समन्वय
- पातंजल योगदर्शनकी बहुकाय निर्माण क्रियासे तुलना
चार्वाकमत ( लोकायत - नास्तिक
- अक्रियावादी )
— दो भेद चार्वाक साघु
२८५-२८६
२८५
27
२८६
२८६
२८६
३५१-३५२
३५१
३५१
२९२-२९३
२८७ २८६-२८७ २८७
२८७
२८७
२८३ - २८४
२८३
२८४
२८४ २८९-२९०
२९०
क्रियावादी - अक्रियावादी
— जैन और बौद्ध शास्त्रो में क्रियावाद और
अक्रियावाद
२८९ द्वादशांग
२९०
३५२
३५२
- षट्दर्शन में काल संबंधी मान्यता — जैन ग्रन्थों में कालके विषय में
चार मत (टि.)
- दिगम्बर ग्रंथ और हेमचन्द्रका
काल संबंधी सिद्धांत
३४९-३५०
३४९
३४९
- शंका-समाधान
- वारह अंग
दिगम्बर श्वेताम्बरोंका मतभेद
— आगमों का समय
निगोद
न्यायवैशेषिक दर्शन
अक्षपाद और कणाद - प्रमाणके लक्षण ( टि. )
- सात पदार्थ (टि. )
— न्याय-वैशेषिकोंके समानतंत्र
- मतभेद
वैदिक साहित्य में ईश्वरका रूप
३४९
३५०
३५०
३५०
३००-३०१ ३००
"
३०१
२८२-२८३
२८२
२८२
37
17
17
33
२९३ २९६
२९३ २९३-२९४
२९४
२९५
२९६
२९७-२९९
२९७-२९८
२९७
२९९
३०१-३०२
३२२-३३१
३२२-३२३
३२२
३२३
३२३
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३२४-३२५