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________________ स्याद्वादमञ्जरी (परिशिष्ट) प्रत्यक्ष अनुमान और शब्द ये तीन प्रमाण माने गये हैं। वैदिक ग्रन्थोंमें कपिलको नास्तिक और श्रुतिविरुद्ध' तंत्रका प्रवर्तक कहकर कपिलप्रणीत सांख्य और पतंजलिके योगशास्त्रको अनुपादेय कहा है। सांख्यदर्शनके प्ररूपक कपिल-सांख्यदर्शन के आध प्रणेता, आदि विद्वान कपिल परयपि कहे जाते है । कपिल क्षत्रिय थे। कुछ लोग कपिलको ब्रह्माका पुत्र बताते हैं । भागवतमें कपिलको विष्णुका अवतार कहकर उन्हें अपनी माता देवहतिको सांख्य तत्त्वज्ञानका उपदेष्टा कहा गया है । विज्ञानभिक्षुने कपिलको अग्निका अवतार बताया है । श्वेताश्वतर उपनिपटें कपिलका हिरण्यगर्भके अवतार रूप में उल्लेख आता है। रामायणमें कपिल योगीको वासुदेवका अवतार मोर सगरते साठ हजार पुत्रोंका दाहक वताया गया है। अश्वघोप बुद्धके जन्मस्थान कपिलरस्तुको कपिल ऋपिकी बसाई हई नगरी कहकर उल्लेख करते हैं। कपिलने अपने पवित्र और प्रधान दर्शनको सर्व प्रथम आसुरिको सिखाया घा! आसुरिने पंचशिखको सिखाया और पंचशिखने इस दर्शनको विस्तृत किया। पंचशिखके पश्चात् यह दर्शन भार्गव, वाल्मीकि, हारीत और देवल प्रभूतिने और ईश्वरकृष्णने सोखा । कपिलको सांख्यप्रवचनसूत्र और तत्त्वसमास नामके ग्रंथोंका प्रणेता कहा जाता है, परन्तु इस कथनका कोई आधार नहीं जान पड़ता। आसुरि—आसुरि कपिलके साक्षात् शिष्य और पंचशिखके गुरु कहे जाते है। आसुरिका मत था कि सुख और दुख बुद्धि के विकार है और ये जिस प्रकार चन्द्रमाका प्रतिबिम्ब जलमें है, उसी तरह पुरुषमें प्रति बिम्बित होते हैं५ आसुरिके सिद्धांतोंके विपयमें विशेष पता नहीं लगता । आसुरिका समय ईसाके पूर्व ६०० वर्ष कहा जाता है। पंचशिख-वाचस्पतिमिश्र, भावागणेश आदि टीकाकार पंचशिखका उल्लेख करते हैं । भावागणेशकी योगसूत्रवृत्तिसे मालूम होता है कि तत्त्वसमासपर पंचशिखने विवरण अथवा व्याख्या लिखी थी। पंचशिखका वर्णन महाभारतमें आता है। कहा जाता है कि पंचशिख अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय आत्माके शिखास्थानमें रहनेवाले ब्रह्मको जानते थे, इसलिये उनका नाम पंचशिख पड़ा। कपिल मतका अनुसरण करनेके कारण पंचशिख कापिलेय नामसे भी कहे जाते थे। चीनके बौद्ध सम्प्रदायके अनुसार पंच १. अतश्च सिद्धमात्मभेदकल्पनयापि कपिलस्य तन्त्रं वेदविरुद्धं वेदानुसारि मनुवचनविरुद्धं च। ब्रह्मसूत्र, शांकरभाष्य २-१-१॥ तथा-नास्तिककपिलप्रणीतसांख्यस्य पतञ्जलिप्रणीतयोगशास्त्रस्य चानुपादेयत्वमुक्तं भारते मोक्षधर्मेष साख्यं योगः पाशुपतं वेदारण्यकमेव च । ज्ञानान्येतानि भिन्नानि नात्र कार्या विचारणा ।। गीता. मध्वभाष्य, अ. २ श्लो. ३९ । न्यायकोश पृ. ९०४ टिप्पणी । २. सांख्यस्य वक्ता कपिलः परमर्षिः पुरातनः । हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्यः पुरातनः । महाभारत, मोक्षधर्म । प्रो. राधाक्रिश्नन् आदि विद्वान् साख्य सिद्धांतके अव्यक्त बीजका ऋग्वेदमें पाये जानेका उल्लेख करते हैं। ३. कपिलस्तत्त्वसंख्याता भगवानात्ममायया। जातः स्वयमजः साक्षादात्मप्रज्ञप्तये नृणाम् । भागवत ३-२५-१। ४. सांख्यसूत्र सर्वप्रथम अनिरुद्ध (१५०० ई. स.) की वृत्ति सहित और कुछ समय वाद विज्ञानभिक्षुके भाष्य ( १६५० ई. स.) सहित देखनेमे आते हैं। अनिरुद्ध और विज्ञानभिक्षुके पूर्ववर्ती ईश्वरकृष्ण, शंकर, वाचस्पतिमिश्र, माधव आदि विद्वान सांख्यसूत्रोंका उल्लेख नहीं करते, इस परसे विद्वान सांख्यसूत्रोंको चौदहवीं शताब्दीके बाद बना हुआ अनुमान करते हैं । ५. देखिये पृ. १३८ ।
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
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