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________________ स्याद्वादमञ्जरी (परिशिष्ट ) ३३१ टीकायें लिखी हैं। इसके अतिरिक्त भासर्वज्ञका न्यायसार, तथा मुक्तावली, दिनकरी, रामरुद्री नामकी भापापरिच्छेदकी टोकायें, तर्कसंग्रह, तर्कभापा, ताकिकरक्षा आदि न्यायदर्शनके उल्लेखनीय ग्रन्थोंमेंसे है। न्यायदर्शनमें नव्यन्यायका जन्म मिथिलाके गंगेश उपाध्यायसे आरंभ होता है। गंगेशका जन्म ई० स० १२०० में हुआ था। गंगेशने तत्त्वचिन्तामणि नामक स्वतंत्र ग्रन्धकी रचना की। इस ग्रंथमें नैयायिकोंके चार प्रमाणोंपर चर्चाकी गई है। तेरहवीं शताब्दी में गंगेशके तत्त्वचिंतामणिपर जयदेवने प्रत्यक्षालोक नामको टीका लिखी । इसके पश्चात् वासुदेव सार्वभौम ( ई० स० १५०० ) ने तत्त्वचिंतामणिव्याख्या लिखी। वासुदेवके चैतन्य, कृष्णानंद, रघुनंदन और रघुनाथ नामके चार उत्तम शिष्य थे । इनमें रधुनाथने तत्त्वचिंतामणि पर दीधिति, और वैशेषिक मतका खंडन करने के लिये पदार्थखंडन, तथा ईश्वरकी सिद्धिके लिये ईश्वरानुमान नामक ग्रंथ लिखे। इसके अतिरिक्त मथुरानाथ (१५८० ई. स.), जगदीश ( १५९० ई. स.) और गदाधर ( १६५० ई० स० ) ने तत्वचिंतामणि पर टीकायें लिखकर नव्यन्यायको पल्लवित किया।
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
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