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________________ जैन परिशिष्ट (क) अवतरणिका पृष्ठ २, पंक्ति ६ : दुःपमार पंचमकाल । जैन धर्मके अनुसार कालचक्र उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी नामक दो विभागोंमें विभक्त है। उत्सपिणी कालमें जीवोंके शरीरकी ऊंचाई, आयु और शरीरके बलकी वृद्धि होती है। अवसर्पिणी कालमें जीवोंके शरीरकी ऊँचाई, आयु और शरीरके बलकी हानि होती है । उत्सर्पिणीके छह भेद-१ दुःषमदुःषमा, २ दुःपमा, ३ दुःपमसुषमा, ४ सुषमदुःषमा, ५ सुषमा, ६ सुपमसुपमा। अवसर्पिणीके छह भेद-१ सुषमसुषमा, २ सुपमा, ३ सुषमदुःषमा, ४ दुःषमसुषमा, ५ दु.षमा, ६ दुःषमदुःषमा। उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी-कालचक्र अवसपिणी कालके छह आरे स्थिति जीवोंकी आयु शरीरको ऊँचाई वर्ण आहारका अंतर सूर्यके समान १ सुषमसुषमा | ४ कोडाकोडी |३ पल्यसे २ पल्य ३ कोशसे सागर २ कोश | आठ वेला (३ दिन) २ सुषमा छह वेला ३ कोडाकोडी | २ पल्यसे १ पल्य २ कोशसे सागर १ कोश ! चन्द्रमाके समान प्रियंगु चार वेला ३ सुपमदुःषमा २ कोडाकोडि |१ पल्यसे |१ कोशसे सागर कोटी पूर्व वर्ष | ५०० धनुष पांचों वर्ण ४ दुःषमसुषमा | ४२००० वर्ष | कोटी पूर्व वर्षसे| ५०० धनुपसे कम १ कोडा- १२० वर्ष | ७ हाथ कोडि सागर प्रतिदिन एक बार अनेक बार ५ दुःषमा २१००० वर्ष | १२० वर्षसे ७ हाथसे रूक्ष २० वर्ष । २ हाथ ६ दुःषमदुःपमा २१००० वर्ष | २० वर्षसे . २ हाथसे । श्याम १५ वर्ष १ हाथ बार बार ३६
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
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