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अन्य. यो. व्य. श्लोक १६ ] स्याद्वादमञ्जरी
१५७ वा ? न स्थूलं, परमाणुरूपस्यैव वाह्यार्थस्याङ्गीकृतत्वात् । न च परमाणवः ते हि सन्तोऽसन्तः सदसन्तो वा स्वकार्याणि कुर्युः । सन्तश्चेत् , किमुत्पत्तिक्षण एव क्षणान्तरे वा ? नोत्पत्तिक्षणे, तदानीमुत्पत्तिमात्रव्यग्रत्वात् तेषाम् । अथ "भूतिर्येषां क्रिया सैव कारणं सैव चोच्यते” इति वचनाद् भवनमेव तेषामपरोत्पत्तौ कारणमिति चेत् , एवं तर्हि रूपाणवो रसाणूनाम् , ते च तेषामुपादानं स्युः, उभयत्रभवनाविशेषात् । न च क्षणान्तरे, विनष्टत्वात् । अथासन्तस्ते तदुत्पादकाः, तर्हि एक स्वसत्ताक्षणमपहाय सदा तदुत्पत्तिप्रसङ्गः, तदसत्त्वस्य सर्वदाऽविशेषात् । सदसत्पक्षस्तु "प्रत्येक यो भवेदोषो द्वयोर्भावे कथं न सः" इति वचनाद्विरोधाघ्रात एव । तन्नाणवःक्षणिकाः॥
नापि कालान्तरस्थायिनः । क्षणिकपक्षसदृक्षयोगक्षेमत्वात् । किञ्च, अमी कियत्कालस्थायिनोऽपि किमर्थक्रियापराङ्मुखाः तत्कारिणो वा ? आये खपुष्पवदसत्त्वापत्तिः । उदग्विकल्पे किमसद्रूपं सद्रूपमुभयरूपं वा ते कार्य कुर्युः ? असद्रूपं चेत् , शशविषाणादेरपि किं न
मानना और निरपेक्ष भी मानना उचित नहीं। क्योंकि अनित्य पदार्थ सापेक्ष होता है और नित्य पदार्थ निरपेक्ष होता है, अर्थात् अपने उत्पादक कारणोंकी अपेक्षा वह नहीं रखता )। यदि परमाणु सहेतुक हैं तो कोई स्थूल कारण परमाणुओंका हेतु है, अथवा स्वयं परमाणु ही परमाणुओंमें हेतु है ? यदि स्थूल पदार्थको परमाणुओंका कारण माना जाय, तो यह ठीक नहीं। क्योंकि आप स्थूल बाह्य पदार्थोंका अस्तित्व स्वीकार नहीं करते-आप लोगोंने बाह्य पदार्थोंको परमाणुरूप ही माना हैं। तथा स्वयं परमाणु भी परमाणुओंमें कारण नहीं हैं। क्योंकि हम पूछते हैं कि ये परमाणु सत्, असत्, अथवा सत्-असत् होकर अपने कार्यको करते हैं ? यदि परमाणु सतरूप होकर अपने कार्यको करें तो परमाणु उत्पत्तिके समय ही अपना कार्य करते हैं, अथवा उत्पत्तिके दूसरे क्षणमें ? परमाणु उत्पत्तिके समय अपना कार्य नहीं करते, क्योंकि उस समय परमाणु अपनी उत्पत्ति ही व्यग्र रहते हैं। यदि कहो कि "उत्पन्न होना ही क्रिया है, और क्रिया ही कारण है" इसलिये परमाणुओंकी उत्पत्ति होना ही दूसरोंकी उत्पत्ति होनेमें कारण है; यह भी ठीक नहीं। क्योंकि यदि उत्पन्न होना ही उत्पत्तिमें कारण मान लिया जाय, तो रूपके परमाणुओंको रसके परमाणु ओंकी उत्पत्तिमें कारण मानना चाहिये, इसलिये रूपके परमाणुओंको रस-परमाणुओंका उपादान कारण कहना चाहिये। क्योंकि जैसे एक परमाणु स्वयं उत्पन्न होकर दूसरे परमाणुओंकी उत्पत्ति कर सकता है, वैसे ही रूप और रसके परमाणु भी साथ उत्पन्न होते हुए एक दूसरेको उत्पत्तिमें सहायक हो सकते हैं। अतएव रूप-परमाणु और रस-परमाणुओंको अपनी-अपनी उत्पत्तिमें पृथक् कारण न मानकर रूपके परमाणुओंकी रसके परमाणुओंसे उत्पत्ति माननी चाहिये । यदि कहो कि परमाणु सतरूप होकर दूसरे क्षणमें अपना कार्य करते हैं, तो यह भी ठीक नहीं। क्योंकि परमाणु उत्पत्तिके बाद ही नष्ट हो जाते हैं । यदि कहो कि परमाणु असत्रूप होकर अपना कार्य करते हैं (दूसरा पक्ष ) तो यह भी ठीक नहीं। क्योंकि अपनी उत्पत्तिके समयको छोड़कर सदा ही इन परमाणुओंको अपना कार्य करते रहना चाहिये; कारण कि असत् परमाणु सदा एकसे रहते हैं। तथा, सत्-असत्रूप होकर भी परमाणु कार्य नहीं करते ( तीसर पक्ष ), क्योंकि "जो दोष सत् और असत् एक-एक स्वभावके अलग-अलग माननेमें कहे गये हैं, वे सब दोष सत्-असत् दोनों स्वभावोंको एक साथ माननेमें भी आते हैं।" इसलिये परमाणु सत् और असत्रूप होकर भी अर्थक्रिया नहीं कर सकते। अतएव परमाणु क्षणिक नहीं हैं।
तथा, अनित्य परमाणु एक क्षणके बाद दूसरे क्षणमें स्थित रह कर भी (एक क्षणसे अधिक, परन्तु परिमित समय तक रहनेवाले ) अर्थक्रिया नहीं कर सकते। क्योंकि परमाणुओंको क्षणिक मानकर अर्थक्रियाकारी माननेमें जो दोष आते हैं, वे यहाँ भी आते हैं। तथा, एक क्षणके बाद रहनेवाले परमाणु अर्थक्रिया करते हैं, अथवा नहीं ? यदि ये परमाणु अर्थक्रिया नहीं करते, तो आकाशके फूलकी तरह इन परमाणुओं