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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायां [अन्य. यो. व्य. श्लोक १४ कारः कम्बुग्रीवो जलधारणाहरणादिक्रियासमर्थः पदार्थविशेषो घट इत्युच्यते। तेषां च सजातीयविजातीयानां स्वरूपं तत्र बुद्धया आरोप्य व्यवच्छिद्यते । अन्यथा प्रतिनियततत्स्वरूपपरिच्छेदानुपपत्तेः। सर्वभावानां हि भावाभावात्मकं स्वरूपम् । एकान्तभावात्मकत्वे वस्तुनो वैश्वरूप्यं स्यात् । एकान्ताभावात्मकत्वे च निःस्वभावता स्यात् । तस्मात् स्वरूपेण सत्वात् पररूपेण चासत्त्वाद् भावाभावात्मकं वस्तु । यदाह
"सर्वमस्ति स्वरूपेण पररूपेण नास्ति च ।
अन्यथा सर्वसत्त्वं स्यात् स्वरूपस्याप्यसंभवः॥" ततश्चैकस्मिन् घटे सर्वेषां घटव्यतिरिक्तपदार्थानामभावरूपेण वृत्तेरनेकात्मकत्वं घटस्य सूपपादम् । एवं चैकस्मिन्नर्थे ज्ञाते सर्वेषामर्थानां ज्ञानम् । सर्वपदार्थपरिच्छेदमन्तरेण तन्निषेधात्मन एकस्य वस्तुनो विविक्ततया परिच्छेदासंभवात् । आगमोऽप्येवमेव व्यवस्थितः
___“जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ ।
जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ॥" तथा-"एको भावः सर्वथा येन दृष्टः
सर्वे भावाः सर्वथा तेन दृष्टाः। सर्वे भावाः सर्वथा येन दृष्टाः एको भावः सर्वथा तेन दृष्टः॥"
तीय पदार्थोंका व्यवच्छेद ही घटका लक्षण है। सजातीय और विजातीय पदार्थोंकी व्यावृत्ति हो जानेपर ही बड़े, मोटे उदरवाले, शंखको ग्रीवाके सदृश ग्रीवावाले और जलके रखने और लाने आदि क्रियामें समर्थ विशिष्ट पदार्थ घट कहा जाता है। इन मृत्तिकोपादानक परिणाम होनेसे सजातीय और पटादिरूप विजातीय पदार्थों के स्वरूपको बुद्धि द्वारा घटमें आरोपित कर उसका व्यवच्छेद किया जाता है; क्योंकि यदि घटका ज्ञान करते समय सजातीय और विजातीय पदार्थोकी व्यावृत्ति न की जाय, तो घटके निश्चित रूपका ज्ञान नहीं हो सकता। समस्त पदार्थ भाव और अभाव रूप होते हैं। पदार्थको यदि एकान्तरूपसे, स्वचतुष्टयकी अपेक्षा, अस्तिरूप ही माना जाये-परचतुष्टयकी अपेक्षा नास्तिरूप न माना जाये-तो पदार्थ परचतुष्टयकी अपेक्षासे भी अस्तिरूप हो जानेसे अनेक रूप हो जायेगा। यदि उसे एकान्तरूपसे अभावात्मक माना जाय-स्वरूप चतुष्टय और पररूप चतुष्टयकी अपेक्षासे भी नास्तिरूप माना जाये तो वह स्वभावशून्य हो जायेगा। अतएव प्रत्येक पदार्थ स्वरूपकी अपेक्षा सत्, और पररूपकी अपेक्षा असत् होनेके कारण भाव-अभाव रूप है। कहा भी है
"सभी पदार्थ स्वरूपकी दृष्टिसे विद्यमान हैं, पररूपकी दृष्टिसे विद्यमान नहीं है। यदि पदार्थ स्वरूपसे अस्तिरूप और पररूपसे नास्तिरूप न हो-प्रत्येक पदार्थमें स्वरूपका अभाव और पररूपका सद्भाव माना जाये तो सभी पदार्थ सत् मात्र रूपसे एक हो जायेंगे और पदार्थोंके स्वरूपका अस्तित्व नहीं रह जायेगा।"
इससे एक घटमें घटभिन्न सभी पदार्थोंकी अभावरूपसे विद्यमानता होनेसे घटका अनेकात्मकत्व (अस्तिनास्तिरूपत्वादि ) सुसिद्ध किया जा सकता है। इस प्रकार एक पदार्थके जाननेसे सब पदार्थों का ज्ञान होता है, क्योंकि सम्पूर्ण पदार्थोंके बिना जाने, सर्व पदार्थ निषेधयुक्त एक पदार्थको अन्य सभी पदार्थोंसे भिन्न रूपसे जानना असंभव हो जाता है । आगममें भी कहा है
"जो एकको जानता है, वह सबको जानता है, जो सबको जानता है, वह एकको जानता है।" तथा
"जिसने एक पदार्थको सम्पूर्ण रीतिसे जान लिया है, उसने सब पदार्थोंको सब प्रकारसे जान लिया है। जिसने सब पदार्थोंको सब प्रकारसे जान लिया है, उसने एक पदार्थको सब प्रकारसे जान लिया है।"