________________
प्रथम आवृत्तिकी भूमिका त्याद्वादमंजरीके निम्नलिखित संस्करण प्रकाशित हो चुके है१ संपादित, दामोदरलाल गोस्वामी, चौखंबा संस्कृत सीरीज, वनारस, १९०० २ हीरालाल वी० हंसराज, मूल सहित गुजराती अनुवाद, जामनगर, १९०३ ३ पंडित जवाहिरलाल शास्त्री व पंडित वंशीधर शास्त्री, रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला, बंबई, वि०सं०१९६६ ४ संपादित, पंडित बेचरदास व पंडित हरगोविन्ददास, काशी, वीर संवत् २४३८ ५ संपादित, मोतीलाल लाधाजी, पूना, वी. सं. २४५२ ६ अगरचन्द्रजी भैरोदानजी सेठिया, सेठिया जैन ग्रंथ माला, बीकानेर, १९२७ ७ आनन्दशंकर बापूजी ध्रुव, मूल सहित अंग्रेजी अनुवाद, बम्बई संस्कृत एण्ड प्राकृत सोरीज, बंबई. १९३३ ८ जगदीशचन्द्र जैन, मूल सहित हिन्दी अनुवाद, रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला, बंबई, १९३५ ९ एफ़ डवल्यू. थॉमस, अंग्रेजी अनुवाद, बलिन अकादमी वलिन, १९६० १० उपर्युक्त पुनर्मुद्रण, मोनीलाल, बनारसीदास, १९६८ ११ साध्वी सुलोचनाश्री, मूलसहित गुजराती अनुवाद, आत्मानन्द जैन गुजराती ग्रन्थमाला, ९८,
भावनगर वि. सं. २०२४ प्रस्तुत संस्करणको अनेक दृष्टियोंसे परिपूर्ण बनानेका प्रयत्न किया गया है ।
प्रस्तुत संस्करणका संक्षिप्त परिचय
१ संशोधन-इस ग्रंथका संशोधन रायचन्द्रमालाकी एक प्राचीन और शुद्ध हस्तलिखित प्रतिके आधारसे किया गया है। इस प्रतिके आदि अथवा अन्तमें किसी संवत आदिका निर्देश न होनेसे इस प्रतिका ठीक ठीक समय मालूम नहीं हो सका, परन्तु प्रति प्राचीन मालूम होती है।।
२ संस्कृतटिप्पणी-संस्कृतके अभ्यासियोंके लिये मूल पाठके कठिन स्थलोंको स्पष्ट करनेके लिये इस ग्रंथमें संस्कृतकी टिप्पणियां लगाई गई है। इन टिप्पणियोंमें सेठ मोतीलाल लाधाजीद्वारा संपादित स्याद्वादमंजरीकी संस्कृत टिप्पणियोंका भी उपयोग किया गया है। एतदर्थ हम सम्पादक महोदयके आभारी हैं।
३ अनुवाद-अनुवादको यथाशक्य सरल और सुबोध बनानेका प्रयत्न किया गया है। इसके लिये अनुवाद करते समय बहुतसे शब्दोंको छूट भी लेनी पड़ी है। विषयका वर्गीकरण करने के साथ विषयको सरल और स्पष्ट बनानेके लिये न्यायके कठिन विषयोंको 'शंका-समाधान,' 'वादो-प्रतिवादी,' 'स्पष्टार्थ' रूपमें उपस्थित किया गया है। प्रत्येक श्लोकके अंतमें श्लोकका संक्षिप्त भावार्थ दिया गया है। अनेक स्थलोंपर भावार्थ लिखते समय ग्रंथके मूल विषयके बाह्य विषयोंकी भी विस्तृत चर्चा की गई है। कहीं-कहीं हिन्दी अनुवाद करते समय और भावार्थ लिखते समय हिन्दीकी टिप्पणियां भी जोड़ी गई हैं।
४ अयोगव्यवच्छेदिका-इस संस्करणमें हेमचन्द्रकी दूसरी कृति अयोगव्यवच्छेदिकाका अनुवाद भी दे दिया गया है। इसके साथ तुलनाके लिये सिद्धसेन और समंतभद्रकी कृतियोंमेंसे टिप्पणी में अनेक श्लोक उद्धृत किये गये हैं।
५ परिशिष्ट-इस संस्करणका महत्त्वपूर्ण भाग है। इसमें जैन, बौद्ध, न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग, पूर्वमीमांसा, वेदान्त, चार्वाक और विविध नामके .आठ परिशिष्ट हैं। जैन परिशिष्टमें तुलनात्मक दृष्टिसे जैन पारिभाषिक शब्दों और विचारोंका स्पष्टोकरण है। बौद्ध परिशिष्टमें बौद्धोंके विज्ञानवाद, शून्यवाद, अनात्मवाद आदि दार्शनिक सिद्धांतोंका पालि, संस्कृत और अंग्रेजी भाषाके ग्रंयोंके आधारसे प्रामाणिक विवेचन किया गया है। आशा है इसके पढ़नेसे पाठकोंकी बौद्धदर्शन संबंधी बहुतसी भ्रांतिपूर्ण धारणायें दूर होंगी।