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________________ प्रस्तावना ૪૨ २०. हेतुका लक्षण हेतुके लक्षण सम्बन्ध में दार्शनिकोंका भिन्न भिन्न मत है । वैशेषिक', सांख्य' और बौद्ध हेतुका त्रैरूप्य लक्षण मानते हैं । यद्यपि हेतुका त्रिरूप लक्षण अधिकांशतः बौद्धोंका ही प्रसिद्ध है, वैशेषिक और सांख्योंका नहीं । इसका कारण यह है कि त्रैरूप्यके विषय में जितना सूक्ष्म और विस्तृत विचार बौद्ध विद्वानोंने किया है तथा हेतुबिन्दु जैसे तद्विषयक स्वतन्त्र ग्रन्थों की रचना की है उतना वैशेषिक और सांख्य विद्वानोंने न तो विचार ही किया है और न कोई उस विषयके स्वतन्त्र ग्रंथ ही लिखे हैं। पर हेतुके त्रैरूप्यकी मान्यता वैशेषिक एवं सांख्योंकी भी है । और बोद्धों की अपेक्षा प्राचीन है । क्योंकि बौद्धोंकी वैरूप्यकी मान्यता तो वसुबन्धु और मुख्यतया दिग्नागसे ही प्रारम्भ हुई जान पड़ती है । किन्तु वैशेषिक और सांख्योंके त्रैरूप्यकी परम्परा बहुत पहलेसे चली आ रही है । प्रशस्तपादने' अपने प्रशस्तपादभाष्य ( पृ० १०० में काश्यप और ( कणाद ) कथित दो पद्योंको उद्धृत किया है, जिनमें पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व और वह । १ देखो, प्रस्तावना पृ० ४५ का फुटनोट । २ सांख्यका० माठर वृ० ५ । ३ " हेतुस्त्रिरूपः । किं पुनस्त्रैरूप्यम् ? पक्षधर्मत्वम्, सपक्षे सत्त्वम्, विपक्षे चासत्त्वमिति," - न्यायप्र० पृ० १ । यही वजह है कि तर्कग्रन्थोंमें बौद्धाभिमत ही त्रैरूप्य का विस्तृत खण्डन पाया जाता है और 'त्रिलक्षणकदर्थन' जैसे ग्रन्थ रचे गये हैं । ५ ये दिग्नाग (४२५A. D. ) के पूर्ववर्ती हैं और लगभग तीसरी चौथी शताब्दी इनका समय माना जाता है । ६ उद्योतकरने ‘काश्यपीयम्' शब्दों के साथ न्यायवार्तिक ( पृ० ६६ ) में कणादका संशयलक्षणवाला 'सामान्यप्रत्यक्षात्' आदि सूत्र उद्धृत किया है । इससे मालूम होता है कि काश्यप कणादका ही नामान्तर था, जो वैशेषिकदर्शनका प्रणेता एवं प्रवर्त्तक है ।
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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