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________________ ४८ न्याय-दीपिका नोंने भी दो अवयवोंको माना है पर उनकी मान्यता उपर्युक्त मान्यतासे भिन्न है । ऊपरकी मान्यतामें तो हेतु और दृष्टान्त ये दो अवयव हैं। और जैन विद्वानों की मान्यतामें प्रतिज्ञा और हेतु ये दो अवयव हैं । जैन ताकिकोंने प्रतिज्ञाका समर्थन' और दृष्टान्तका निराकरण किया है। तीन अवयवोंकी मान्यता सांख्यों (माठर का० ५) और बौद्धोंके अलावा मीमांसकों (प्रकरणपं० पृ० ८३-८५) की भी है। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि लघु अनन्तवीर्य (प्रमेयर० ३-३६) और उनके अनुसः हेमचन्द्र (प्रमाणमी० २-१-८) मीमांसकोंकी चार अवयव मान्यताका भी उल्लेख करते हैं यदि इनका उल्लेख ठीक है तो कहना होगा कि चार अवयवोंकों मानने वाले भी कोई मीमांसक रहे हैं। इस तरह हम देखते हैं कि दशावयव और पञ्चावयवकी मान्यता नैयायिकों की है। चार और तीन अवयवोंकी मीमांसकों, तीन अवयवोंकी सांख्यों, तीन, दो और एक अवयवोंकी बौद्धों और दो अवयवोंकी मान्यता जैनोंकी है । वादिदेवसूरिने धर्मकीत्तिकी तरह विद्वान्के लिए अकेले हेतुका भी प्रयोग बतलाया है । पर अन्य सभी दिगम्बर और श्वेताम्बर विद्वानोंने परार्थानुमानप्रयोग के कमसे कम दो अवयव अवश्य स्वीकृत किये हैं। प्रतिपाद्योंकेअनुरोधसे तो तीन, चार और पाँचभी अवयव माने हैं। प्रा० धर्मभूषणने पूर्व परम्परानुसार वादकथाकी अपेक्षा दो और वीतरागकथाकी अपेक्षा अधिक अवयवोंके भी प्रयोगका समर्थन किया हैं। १ “एतद्द्वयमेवानुमानांगं नोदाहरणम् ।”–परीक्षामु० ३-३७ । २ देखो, परीक्षामु० ३-३४ । ३ देखो, परीक्षामु ० ३-३८-४३ । ४ नियुक्तिकार भद्रबाहुने (दश० नि० गा० १३७) भी वशावयवोंका कथन किया है पर वे नैयायिकोंसे भिन्न हैं। ५ देखो, स्याद्वादरत्नाकर १० ५४८ ।
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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