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________________ २१४ न्याय-दीपिका व्याप्त (विषय ) किये जाते हैं। तथा इसी व्याप्ति क्रियाका जो कर्ता है उसे ब्यापक कहते हैं, क्योंकि 'वि' पूर्वक 'प्राप्' धातु से कर्ता अर्थ में 'वुल' प्रत्यय करने पर व्यापक' शब्द सिद्ध होता है। वह व्यापक अग्न्यादिक हैं। इसीलिए अग्नि धूम को व्याप्त करती 5 है, क्योंकि 'जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ अग्नि नियम से होती है' इस तरह धूम वाले सब स्थानों में नियम से अग्नि पायी जाती है। किन्तु धूम अग्नि को वैसा व्याप्त नहीं करता, क्योंकि अंगारापन्न अग्नि धूम के बिना भी रहती है। कारण, जहां 'अग्नि है वहाँ नियम से धूम भी है' ऐसा सम्भव नहीं है। 10 शङ्का-धूम गीले ईन्धन वाली अग्नि को व्याप्त करता ही है। अर्थात् वह उसका व्यापक होता है, तब आप कैसे कहते हैं कि घूम अग्नि का व्यापक नहीं होता ? समाधान-गीले ईन्धनवाली अग्नि का धूम को ब्यापक मानना हमें इष्ट है। क्योंकि जिस तरह 'जहां जहां अविच्छिन्नमूल धूम ___15 होता है वहाँ वहाँ अग्नि होती है' यह सम्भव है उसी तरह जहां जहां गीले ईन्धन वाली अग्नि होती है वहाँ वहाँ धूम होता है' यह भी सम्भव है। किन्तु अग्निसामान्य धूम-विशेष का व्यापक ही है-व्याप्य नहीं; कारण कि 'पर्वत अग्नि वाला है, क्योंकि वह धूम वाला है' इस अनुमान में अग्नि-सामान्य की ही अपेक्षा होती है 20 आन्धन वाली अग्नि या महानसीय, पर्वतीय, चत्वरीय और गोष्ठीय आदि विशेष अग्नि की नहीं। इसलिये धूम अग्नि का व्यापक नहीं है, अपितु अग्नि ही धूम की व्यापक है। अतः 'जो जो धूमवाला होता है वह अग्निवाला होता है, जैसे—रसोई का घर' इस प्रकार दृष्टान्त का सम्यक् वचन बोलना चाहिए। किन्तु 25 इससे विपरीत वचन बोलना दृष्टान्ताभास है । इस तरह यह
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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