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तीसरा प्रकाश
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अर्थात् — अग्नि को 10
।
अतः 'द्रव्यत्व' हेतु
प्रकिञ्चित्कर है । अपरिणामी है,
भेद हैं- १ सिद्धसाधन और २ बाधितविषय | उनमें पहले का उदाहरण यह है - ' शब्द श्रोत्रेन्द्रिय का विषय होना चाहिए, क्योंकि वह शब्द हैं' । यहाँ 'श्रोत्रेन्द्रिय की विषयता' रूपसाध्य शब्द में श्रावणप्रत्यक्ष से ही सिद्ध है । अतः उसको सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त किया गया 'शब्दपना' हेतु सिद्धसाधन नाम का श्रकिञ्चित्कर 5 हेत्वाभास है । बाधितविषय नामका श्रकिञ्चित्कर हेत्वाभास अनेक प्रकार का है । कोई प्रत्यक्षबाधितविषय है । जैसे– 'अग्नि अनुष्ण—- ठंडी है, क्योंकि वह द्रव्य है' । यहाँ 'द्रव्यत्व' हेतु प्रत्यक्षबाधितविषय है । कारण उसका जो ठंडापन विषय है वह उष्णताग्राहक स्पर्शनेन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष से बाधित है। छूने पर वह उष्ण प्रतीत होती है, ठंडी नहीं कुछ भी साध्यसिद्धि करने में समर्थ न होने से कोई अनुमानवाधित विषय है । जैसे - ' शब्द क्योंकि वह किया जाता है' यहाँ 'किया जाना' हेतु 'शब्द परिणामी है, क्योंकि वह प्रमेय है' इस अनुमान से बाधितविषय है । इस- 15 लिये वह अनुमानबाधितविषय नामका अकिञ्चित्कर हेत्वाभास है । कोई श्रागमबाधितविषय है । जैसे- 'धर्म परलोक में दुःख का देने वाला है, क्योंकि वह पुरुष के श्राश्रय से होता है, जैसेश्रधर्म' यहाँ 'धर्म सुख का देने वाला है' ऐसा श्रागम है, इस श्रागम से उक्त हेतु बाधितविषय है । कोई स्ववचनबाधित विषय है | 20 जैसे - मेरी माता बन्ध्या है, क्योंकि पुरुष का संयोग होने पर भी गर्भ नहीं रहता है । जिसके पुरुष का संयोग होने पर भी गर्भ नहीं रहता है वह बन्ध्या कही जाती है, जैसे— प्रसिद्ध वन्ध्या स्त्री । यहाँ हेतु अपने वचन से बाधितविषय है, क्योंकि स्वयं मौजूद है और माता भी मान रहा है फिर भी यह कहता है कि मेरी माता बन्ध्या है । श्रतः हेतु स्ववचनबाधितविषय नामका
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