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तीसरा प्रकाश
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हेत्वाभास का लक्षण और उनके भेद_ हेत्वाभास किन्हें कहते हैं ? जो हेतु के लक्षण से रहित हैं, किन्तु हेतु जैसे प्रतीत होते हैं उन्हें हेत्वाभास कहते हैं । वे चार प्रकार के हैं१ प्रसिद्ध, २ विरुद्ध, ३ अनैकान्तिक और ४ अकिञ्चित्कर ।
(१) असिद्ध—जिसकी साध्य के साथ व्याप्ति अनिश्चित है 5 वह असिद्ध हेत्वाभास है। हेतु की यह अनिश्चितता हेतु के स्वरूप के प्रभाव का निश्चय होने से और स्वरूप में संशय होने से होती है। स्वरूपाभाव के निश्चय में स्वरूपासिद्ध है और स्वरूप के सन्देह में सन्दिग्धासिद्ध है। उनमें पहले का उदाहरण यह है—'शब्द परिणमनशील है, क्योंकि यह चक्षु इन्द्रिय का विषय है।' यह 10 चक्षु इन्द्रिय का विषय हेतु स्वरूपासिद्ध है। क्योंकि शब्द' श्रोत्रेन्द्रिय का विषय है, चक्षु इन्द्रिय का नहीं। अतः शब्द में चक्षु इन्द्रिय की वषयता का अभाव निश्चित है इसलिए वह स्वरूपासिद्ध है। दूसरे का उदाहरण यह है-धूम अथवा भाप आदि के निश्चय किये बना ही कोई यह कहे कि 'यह प्रदेश अग्नि वाला है, क्योंकि वह 15 'म वाला है।' यहाँ 'धूम' हेतु सन्दिन्धासिद्ध है.। कारण, उसके वरूप में सन्देह है। ... । (२) विरुद्ध-जिस हेतु की साध्य से विरुद्ध (साध्याभाव) के . पथ व्याप्ति हो वह विरुद्ध हेत्वाभास है। जैसे–'शब्द अपरिणमन- .
ल है, क्योंकि किया जाता है' यहाँ 'किया जाना' हेतु की व्याप्ति 20 परिणमनशील से विरुद्ध परिणमनशीलता के साथ है। अतः वह 'रुद्ध हेत्वाभास है।
(३) अनैकान्तिक-ज़ो पक्ष, सपक्ष और विपक्ष में रहता है . . , { अनैकान्तिक हेत्वाभास है। वह दो प्रकारका है—१ निश्चितपक्षवृत्ति और २ शङ्कितविपक्षवृत्ति । उनमें पहले का उदाहरण 25