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________________ २०४ न्याय-दीपिका सामान्य है और शिशपा उसका विशेष है और विशेष सामान्य के बिना नहीं हो सकता है। इसलिए यहाँ सामान्य-विशेषभाव के भङ्ग होने का प्रसङ्गरूप बाधक मौजूद है। किन्तु 'मैत्री का पुत्रपन हो कालापन न हो' ऐसा कहने में (व्यभिचारशङ्का प्रकट करने में) कोई बाधक नहीं 5 है, अर्थात्-उस व्यभिचारशङ्का को दूर करने वाला कोई अनकूल तर्क-कि यदि कालापन न हो तो मैत्री का पुत्रपन नहीं हो सकता है नहीं है, क्योंकि गोरेपन के साथ भी मैत्री के पुत्रपन का रहना सम्भव है। अतः 'मैत्री का पुत्रपन' हेतु हेत्वाभास ही है। अर्थात्-वह सन्दिग्धानकान्तिक है। उसके पक्षधर्मता है, क्योंकि पक्ष0 भूत गर्भस्थ मैत्रीपुत्र में रहता है। सपक्ष किये गये मौजूद मैत्रीपुत्रों में रहने से सपक्ष-सत्त्व भी है। और विपक्ष गोरे चैत्र के पुत्रों से व्यावृत्त होने से विपक्षव्यावृत्ति भी है। कोई बाधा नहीं है, इसलिए अबाधित विषयता भी है, क्योंकि गर्भस्थ पुत्र का कालापन किसी प्रमाण से बाधित नहीं है। असत्प्रतिपक्षता भी है, क्योंकि 5 विरोधी समान बल वाला प्रमाण नहीं है। इस प्रकार 'मैत्री के पुत्रपन' में पाँचों रूप विद्यमान हैं। तीन रूप तो 'हजार में सौ' के न्याय से स्वयं सिद्ध हैं। अर्थात्-जिस प्रकार हजार में सौ प्रा ही जाते हैं उसी प्रकार मंत्री पुत्रपन में पाँच रूपों के दिखा देने पर तीन रूप भी प्रदर्शित हो जाते हैं। 20 अन्यथानुपपत्ति को ही हेतु-लक्षण होने की सिद्धि यहाँ यदि कहा जाय कि केवल पाँचरूपता हेतु का लक्षण नहीं है, किन्तु अन्यथानुपपत्ति से विशिष्ट ही पांचरूपता हेतु का लक्षण है। तो उसी एक अन्यथानुपपत्ति को ही हेतु का लक्षण मानिये; क्योंकि अन्यथानुपपत्ति के अभाव में पाँचरूपता के रहने पर भी 25 'मैत्री का पुत्रपन' प्रादि हेतुओं में हेतुता नहीं है और उसके सद्भाव
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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