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________________ तीसरा प्रकाश न होने से हेतु लक्षण से रहित है और कुछ रूपों के होने से हेतु के समान प्रतीत होते हैं ऐसा वचन है। - नैयायिकों के द्वारा माना गया हेतु का यह पाँचरूपता लक्षण भी युक्तिसङ्गत नहीं है, क्योंकि पक्षधर्म से शून्य भी कृत्तिका का उदय शकट के उदयरूप साध्य का हेतु देखा जाता है। अतः पाँचरूपता 5 अव्याप्ति दोष से सहित है। . दूसरी बात यह है, कि नैयायिकों ने ही केवलान्वयी और केवलव्यतिरेकी इन दोनों हेतु प्रों को पाँचरूपता के बिना भी गमक ( ज्ञापक ) स्वीकार किया है। वह इस प्रकार से है-उन्होंने हेतु के तीन भेद माने हैं-१ अन्वयव्यतिरेकी, २ केवलान्वयी और 10 ३ केवलव्यतिरेकी। १. उनमें जो पाँच रूपों से सहित है वह अन्वयव्यतिरेकी है। जैसे—'शब्द अनित्य है, क्योंकि कृतक है-किया जाता है, जो जो किया जाता है वह वह अनित्य है, जैसे घड़ा, जो जो अनित्य नहीं होता वह वह किया नहीं जाता, जैसे—अाकाश, और किया जाता है यह शब्द, 15 इसलिए अनित्य ही है।' यहाँ शब्द को पक्ष करके उसमें अनित्यता सिद्ध की जा रही है। अनित्यता के सिद्ध करने में किया जाना हेतु है। वह पक्षभूत शब्द का धर्म है। अतः उसके पक्षधर्मत्व है । सपक्ष घटादिकों में रहने और विपक्ष आकाशादिक में न रहने से सपक्षसत्त्व और विपक्ष व्यावृत्ति भी है। हेतु का विषय साध्य (अनित्यत्व) 20 किसी प्रमाण से बाधित न होने से अबाधितविषयत्व और प्रतिपक्षी साधन न होने से असत्प्रतिपक्षत्व भी विद्यमान है। इस तरह किया जाना' हेतु पाँचों रूपों से विशिष्ट होने के कारण अन्वयव्यतिरेकी है। वा २. जो पक्ष और सपक्ष में रहता है तथा विपक्ष से रहित है वह 25
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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