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________________ १८० न्याय-दीपिका ज्ञानको तर्क कहते है। साध्य और साधन में गम्य और गमक (बोध्य और बोधक) भाव का साधक और व्यभिचार की गन्ध से रहित जो सम्बन्ध विशेष है उसे व्याप्ति कहते हैं। उसी को अविना भाव भी कहते हैं । उस व्याप्ति के होने से अग्न्यादिक को धूमादिक हो 5 जनाते हैं, घटादिक नहीं। क्योंकि घटादिक की अग्न्यादिक के साथ व्याप्ति (अविनाभाव) नहीं है । इस अविनाभावरूप व्याप्ति के ज्ञान में जो साधकतम है वह यह तर्क नाम का प्रमाण है। श्लोकवात्तिक भाष्य में भी कहा है - "साध्य और साधन के सम्बन्धविषयक अज्ञान को दूर करने रूप फल में जो साधकतम है वह तर्क है।" 'ऊहा' भी 10 तर्क का ही दूसरा नाम है। वह तर्क उक्त व्याप्तिको सर्वदेश और । सर्वकाल की अपेक्षा से विषय करता है। शङ्का-इस तर्क का उदाहरण क्या है ? प्रकर समाधान-'जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ अग्नि होती प्रवि है' यह तर्क का उदाहरण है। यहाँ धूम के होने पर अनेक बार इस 15 अग्नि की उपलब्धि और अग्नि के अभाव में धूम की अनुपलब्धि पाई जाने पर सब जगह और सब काल में धुआँ अग्नि का व्यभिचारी नहीं है—अग्नि के होने पर ही होता है और अग्नि के अभाव में नहीं होता' इस प्रकार का जो सर्वदेश और सर्वकालरूप से अविना- वही भाव को ग्रहण करने वाला बाद में ज्ञान उत्पन्न होता है वह तर्क 20 नाम का प्रत्यक्षादिक से भिन्न ही प्रमाण है। प्रत्यक्ष निकटवर्ती ग्रहण ही धूम और अनि के सम्बन्ध का ज्ञान कराता है, अतः वह व्याप्ति व्यारि का ज्ञान नहीं करा सकता। कारण, व्याप्ति सर्व देश और सर्वकाल है या को लेकर होती है। प्राता शङ्का-यद्यपि प्रत्यक्षसामान्य ( साधारण प्रत्यक्ष ) व्याप्ति को 25 विषय करने में समर्थ नहीं है तथापि विशेष प्रत्यक्ष उसको विषय
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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