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________________ न्याय-दीपिका निर्मलता है और वह पूर्ण निर्मलता केवलज्ञान की तरह अवधि और मनःपर्यय में भी अपने विषय में विद्यमान है। इसलिये वे दोनों भी पारमार्थिक ही हैं। अवधि आदि तीनों ज्ञानों को अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष न हो सकने की 5 शङ्का और उसका समाधान शङ्का-अक्ष नाम चक्षु आदि इन्द्रियों का है, उनकी सहायता लेकर जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसे ही प्रत्यक्ष कहना ठीक है, अन्य (इन्द्रियनिरपेक्ष अवधिज्ञानादिक) को नहीं ? ___समाधान—यह शङ्का ठीक नहीं है ; क्योंकि आत्मा मात्र को 10 अपेक्षा रखने वाले और इन्द्रियों की अपेक्षा न रखने वाले भी अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान को प्रत्यक्ष कहने में कोई विरोध नहीं है। कारण, प्रत्यक्षता का प्रयोजक स्पष्टता ही है, इन्द्रिय जन्यता नहीं। और वह स्पष्टता इन तीनों ज्ञानोंमें पूर्णरूप से है। 15 इसीलिये मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल इन पाँच ज्ञानों में 'आद्ये परोक्षम्' [ त० सू० १-११ ] और 'प्रत्यक्षमन्यत्' [ त० सू० १-१२ ] इन दो सूत्रों द्वारा प्रथम के मति और श्रुत इन दो ज्ञानों को परोक्ष तथा अवधि, मनःपर्यय और केवल इन तीनों ज्ञानों को प्रत्यक्ष कहा है। शङ्का-फिर ये प्रत्यक्ष शब्द के वाच्य कैसे हैं ? अर्थात् इनको 20 प्रत्यक्ष शब्द से क्यों कहा जाता है ? क्योंकि अक्ष नाम तो इन्द्रियों का है और इन्द्रियों की सहायता से होने वाला इन्द्रियजन्य ज्ञान ही प्रत्यक्ष शब्द से कहने योग्य है ? __ समाधान हम इन्हें रूढि से प्रत्यक्ष कहते हैं। तात्पर्य यह कि प्रत्यक्ष शब्द के व्युत्पत्ति (यौगिक) अर्थ की अपेक्षा न करके अवधि 25 आदि ज्ञानों में प्रत्यक्ष शब्द की प्रवृत्ति होती है और प्रवृत्ति में
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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