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दूसरा प्रकाश
प्रमाणविशेषका स्वरूप बतलानेके लिये यह दूसरा प्रकाश प्रारम्भ किया जाता है। प्रमाणके भेद और प्रत्यक्ष का लक्षण
__ प्रमाणके दो भेद हैं :-१ प्रत्यक्ष और २ परोक्ष । विशद प्रतिभास 5 ( स्पष्ट ज्ञान ) को प्रत्यक्ष कहते हैं।' यहाँ 'प्रत्यक्ष' लक्ष्य है, 'विशदप्रतिभासत्व' लक्षण है। तात्पर्य यह कि जिस प्रमाणभूत ज्ञानका प्रतिभास (अर्थप्रकाश) निर्मल हो वह ज्ञान प्रत्यक्ष है ।
शङ्का-विशदप्रतिभासत्व' किसे कहते हैं ?
समाधान-ज्ञानावरणकर्म के सर्वथा क्षयसे अथवा विशेष10 क्षयोपशमसे उत्पन्न होनेवाली और शब्द तथा अनुमानादि प्रमाणों
से नहीं हो सकनेवाली जो अनुभवसिद्ध निर्मलता है वही निर्मलता 'विशदप्रतिभासत्व' है। किसी प्रामाणिक पुरुषके 'अग्नि है' इस प्रकारके वचनसे और 'यह प्रदेश अग्निवाला है, क्योंकि धुआँ है,
इस प्रकारके धूमादि लिङ्गसे उत्पन्न हुए ज्ञानकी अपेक्षा 'यह अग्नि है। 15 इस प्रकारके उत्पन्न इन्द्रियज्ञानमें विशेषता (अधिकता) देखी जाती
है। वही विशेषता निर्मलता, विशदता और स्पष्टता इत्यादि शब्दों द्वारा कही जाती है। अर्थात् ये उसी विशेषताके बोधक पर्याय नाम हैं। तात्पर्य यह कि विशेषप्रतिभासनका नाम विशद
प्रतिभासत्व है। भगवान् भट्टाकलङ्कदेवने भी 'न्यायविनिश्चय' 20 में कहा है :
स्पष्ट, यथार्थ और सविकल्पक ज्ञानको प्रत्यक्षका लक्षण कहा। है।' इसका विवरण (व्याख्यान) स्याद्वादविद्यापति श्रीवादिराजने