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प्रस्तावना
धर्मभूषरण नाम के दूसरे विद्वान्
ऊपर कहा गया है कि ग्रन्थकारने दूसरे पूर्ववर्ती धर्मभूषणोंमे भिन्नत्व ख्यापित करनेके लिए अपने नामके साथ 'अभिनव' विशेषण लगाया है। अतः यहाँ यह बता देना आवश्यक प्रतीत होता है कि जैनपरम्परामें धर्मभूषण नामके अनेक विद्वान् हो गये हैं । एक धर्मभूषण वे हैं जो भट्टारक धर्मचन्द्र के पट्टपर बैठे थे और जिनका उल्लेख बरारप्रान्तके मूर्तिलेखोंमें बहुलतया पाया जाता है। ये मूत्तिलेख शकसम्बत् १५२२, १५३५, १५७२ और १५७७ के उत्कीर्ण हुए हैं । परन्तु ये धर्मभूषण न्यायदीपिकाकारके उत्तरकालीन हैं। दूसरे धर्मभूषण वे हैं जितके आदेशानुसार केशववर्णीने अपनी नोम्मटसारकी जीवतत्त्वप्रदीपिका नामक टीका शकसम्बत् १२८१ (१३५६ ई०) में बनाई है। तीसरे धर्मभुषण वे हैं जो अमरकीत्तिके गुरु थे तथा विजयनगरके शिलालेख नं० २ में उल्लिखित तीन धर्मभूषणोंमें पहले नम्बरपर जिनका उल्लेख है और जो ही सम्भवतः विन्ध्यगिरि पर्वतके शिलालेख नं० १११ (२७४) में भी अमरकीत्तिके गुरुरूपसे उल्लिखित हैं। यहाँ उन्हें 'कलिकालसर्वज्ञ' भी कहा गया है। चौथे धर्मभूषण वे हैं जो अमरकीत्तिके शिष्य और विजयनगर शिलालेख नं० २ गत पहले धर्मभूषणके प्रशिष्य हैं एवं सिंहनन्दीव्रतीके सधर्मा हैं तथा विजयनगरके शिलालेख नं० २ के ११वें पद्य में दूसरे नं० के धर्मभूषणके रूपमें उल्लिखित हैं ।
१ सहस्रनामाराधना' के कर्ता देवेन्द्रकीत्तिने भी 'सहस्रनामाराधना' में इन दोनों विद्वानोंका अपने गुरु और प्रगुरुरूपसे उल्लेख किया है। देखो, जैनसिद्धान्तभवन पारासे प्रकाशित प्रशस्ति सं० पृ० ६४ ।
२ देखो, डा० ए० एन० उपाध्येका 'गोम्मटसारकी जीवतत्त्वप्रदीपिका टीका' शीर्षक लेख 'अनेकान्त' वर्ष ४ किरण १ पृ० ११८ ।