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प्रस्तावना
उल्लेख से महाभाष्यके विषयमें कोई विशेष प्रकाश नहीं पड़ता। प्रथम तो यह, कि यह उल्लेख मुख्तारसा० के प्रदर्शित उल्लेखों के समसामयिक है, उसका शृङ्खलाबद्ध पूर्वाधार अभी प्राप्त नहीं है जो स्वामीसमन्तभद्रके समय तक पहुँचाये । दूसरे यह, कि अभयचन्द्रसूरि इस उल्लेखके विषयमें अभ्रान्त प्रतीत नहीं होते । कारण, वे अकलङ्कदेवकी लघीयस्त्र यगत जिस कारिकाके 'अन्यत्र' पदका 'स्वामीसमन्तभद्रादिसूरि' शब्दका अध्याहार करके 'तत्त्वार्थमहाभाष्य' व्याख्यान करते हैं वह सूक्ष्म समीक्षण करने पर अकलङ्कदेवको अभिप्रेत मालूम नहीं होता । बात यह है कि अकलङ्कदेव वहाँ 'अन्यत्र' पदके द्वारा कालादिलक्षणको जाननेके लिये अपने पूर्वरचित तत्त्वार्थ राजवात्तिकभाष्यकी सूचना करते जान पड़ते हैं, जहां (राजवार्तिक ४-४२) उन्होंने स्वयं कालादि आठका विस्तारसे विचार किया है ।
यद्यपि प्रक्रियासंग्रहमें भी अभयचन्द्र सूरि ने सामन्तभद्री महाभाष्यका उल्लेख किया है और इस तरह उनके ये दो उल्लेख हो जाते हैं। परन्तु इनका पूर्वाधार क्या है? सो कुछ भी मालूम नहीं होता। अतः प्राचीन साहित्य परसे इसका अनुसन्धान करनेकी अभी भी आवश्कता बनी हुई है।
२. अबतक जितने भी शिलालेखों आदिका संग्रह किया गया है उनमें महाभाष्य या तत्त्वार्थमहाभाष्यका उल्लेखवाला कोई शिलालेखादि उपलब्ध नहीं है । जिससे इस ग्रंथके अस्तित्व विषयमें कुछ सहायता मिल सके । तत्त्वार्थसूत्रके तो शिलालेख मिलते भी हैं पर उसके महाभाष्यका कोई शिलालेख नहीं मिलता।
३.जनश्रुति-परम्परा जरूर ऐसी चली आ रही है कि स्वामी समन्तभद्रने तत्वार्थसूत्रपर 'गन्धहस्ति' नामका भाष्य लिखा है जिसे महाभाष्य और १ अभूदुमास्वातिमुनिः पवित्रे वंशे तदीये सकलार्थवेदी । सूत्रीकृतं येन जिनप्रणीतं शास्त्रार्थजातं मुनिपुङ्गवेन ।।—शि० १०८ । श्रीमानुमास्वातिरयं यतीशस्तत्वार्थसूत्रं प्रकटीचकार । यन्मुक्तिमार्गाचरणोद्यतानां पाथेयमर्थ्य भवति प्रजानाम् ॥-शि०१०५ (२५४)