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शास्त्रपाठः
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साक्षिग्रन्थः [प्रवचनसारो० ५४२] [पञ्चाशकप्र. ५/४६] [उपदेशमाला ३०७] [चन्द्रकवेध्यक प्र. ४०] [पुष्पमाला ३०५] [पुष्पमाला ३३८] [पञ्चलिङ्गीप्र.वृत्तिः ८] [पुष्पमाला ४०१] [उपदेशमाला ७५] [गुरुतत्त्वविनिश्चयः १/४] [गुरुतत्त्वविनिश्चयः १/५] [पुष्पमाला ३३७] [उपदेशमाला ७] [दशवैकालिकसूत्रम् ८/६१] [षड्दर्शनसमुच्चयः] [प्रवचनसारः ३१७] [बृहत्कल्पभाष्यम् २४२] [पुष्पमाला प्र. ३३१] [उपदेशमालावृत्तिः ९८] [उपदेशमाला ९८] [नवतत्त्वप्रकरणम् १] [तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् १/४] [गच्छाचार प्र. १७] [दशवैकालिकसूत्रम् ९/१/२] [गुरुतत्त्वविनिश्चयः १/६] [पुष्पमाला ३०४] [उपदेशमालावृत्तिः ९६] [उपदेशमाला ९६] [प्रवचनसारो० ५४४]
८६ चरणजुओ मयरहिओ ८७ छट्ठट्ठमदसमदुवालसेहिं
छलछोमसंवइयरो ८९ छव्विहविणयविहन्नू
जइ वाणिसुयाइ जणणीए अनिसिद्धो जम्बूद्वीपेऽस्ति पौरस्त्य जम्हा विणयइ कम्म जस्स गुरुम्मि न भत्ती जह कारुणिओ विज्जो जह दीवो अप्पाणं
जह सीसाइं निकिंतइ ९८ जं आणवेइ राया ९९ जाइ सद्धाइ नक्खंतो १०० जातयो निग्रहस्थाना १०१ जियदु व मरदु व १०२ जियपरिसो जियनिद्दो १०३ जियपरिसो जियनिद्दो १०४ |'जीवंतस्स इति' इहास्मिन् १०५ जीवंतस्स इह जसो १०६ जीवाजीवा पुण्णं १०७ जीवाजीवात्रव १०८ जीहाए वि लिहंतो १०९ जे आवि मंदित्ति ११० जे किर पएसिपमुहा १११ जे मुद्धजणं परिवंचयंति ११२ | जो गिण्हइ' गाहा ११३ जो गिण्हइ गुरुवयणं ११४ जोग्गो परिणयवायण ११५ जो जेण सुद्धधम्मे
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