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श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम्
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सहस्य सोऽन्यार्थे | ३|२।१४३॥ सहात्तुल्ययोगे | ७|३|१७८ ।।
सहायाद्वा | ७|१|६२||
सहार्थे | २|२|४५||
सहिवहे - स्य |१| ३ | ४३ ॥ साक्षादादिश्च्व्यर्थे |३|१|१४||
साक्षाद्द्रष्टा |७|१|१९७॥ सातिहेतियूति - र्तिः | ५ | ३ |९४||
सादेः | २|४|४९ ||
सादेश्चा तदः | ७|१।२५।।
साधकतमं करणम् |२२|२४॥ साधुना ।२।२।१०२|| साधुपुष्यत्पच्यमाने | ६ | ३|११७ || साधौ |५|१|१५५||
सामीप्येऽधो - रि |७|४|७९ ॥ सायंचिरंप्रायात् |६|३|८८||
सायाह्नादयः | ३|१|५३॥ सारवैश्वा-यम् | ७|४|३०|| साल्वात् तौ |६|३|५४|| साल्वांशप्रत्य-दिञ् ।६।१।११७।। सास्य पौर्णमासी | ६ |२|९८|| साहिसातवे - तू | ५|१|५९ ।। सिकताशर्करात् |७|२|३५| सिचि परस्मै - ति | ४ | ३ |४४ ॥
सिचोऽञ्जेः | ४|४|८४ ॥
सिचो यङि | २|३|६० ॥
सिजघन्याम् | ३ | ४|५३॥ सिजाशिषावात्मने | ४ | ३ |३५|| सिज्विदोऽभुवः | ४|२|९२ ॥
सिद्धिः- तू |१|१|२||
सिद्धौ तृतीया | २|२|४३ ॥ सिध्मादिभ्यः | ७|२।२१॥
सिध्यतेरज्ञाने | ४ | २|११॥ सिन्ध्वपकरात्काणौ | ६ | ३|१०१॥
सिन्ध्वादेर |६| ३ | २१६ ॥ सिंहाद्यैः पूजायाम् | ३|१|८९ ॥ सीतया संगते | ७|१|२७|
सुः पूजायाम् | ३|१|४४ ।। सुखादेः |७|२|६३॥ सुखादेरनुभवे | ३ | ४ | ३४|| सुगदुर्गमाधारे |५|१|१३२ ॥ सुगः स्यसनि | २|३|६२ | सुग् द्विषार्ह :- त्ये | ५|२|२६|| सुचोवा | २|३|१०|| सुज्वार्थे सं-हिः | ३|१|१९| सुतंगमादेरिञ् ।६।२।८५|| सुदुर्भ्यः |४|४|१०८ || सुपन्थ्यादेर्भ्यः ।६।२।८४||