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श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम्
फलस्य जातौ |३|१|१३५॥ फले |६|२|५८॥ फल्गुनीप्रो - | २|२| १२३॥
फल्गुन्याष्टः | ६ |३|१०६ ॥ फेनोष्मबाष्प-ने |३|४|३३॥
ब
बन्धे घञि नवा | ३|२|२३॥ बन्धेर्नाम्नि |५|४|६७||
बन्धी बहुव्रीहौ | २|४|८४ ॥ बलवातदन्त-लः | ७|२|१९|| बलवातादूलः | ७|१|९१॥ बलादेर्यः |६|२|८६|| बलिस्थले दृढः | ४|४|६९ ॥ बष्कयादसमासे |६|१|२०||
बस्तेरेयञ् | ७|१|११२|| बहिषटीकणू च |६|१|१६||
बहुग - दे |१|१|४०|| बहुलं लुप् |३|४|१४||
बहुलम् |५|१|२||
बहुलमन्येभ्यः | ६ | ३|१०९||
बहुलानुराधा - लुप् |६|३|१०७ ॥ बहुविध्वरु-दः |५|१|१२४ ॥
बहुविषयेभ्यः | ६ |३|४५ || बहुव्रीहेः - टः | ७|३|१२५ ॥
२९७
बहुष्वस्त्रियाम् |६|१|१२४ ॥
बहुवेरीः | २|१|४९|| बहुस्वरपूर्वादिकः | ६|४|६८|| बहूनां प्रश्ने वा | ७|३|५४॥ बोर्डे |७|३|७३||
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बहोर्णी भूय् | ७|४|४०||
बहोस | ७|२|११२ ॥ बह्वल्पार्था - प्रशस् |७|२।१५०॥ बाढांन्तिक -दौ | ७|४|३७||
बाहूवदिर्बलात् |७|२|६६ ॥
बाह्वन्तक-म्नि | २|४|७४ || बाह्वादिभ्यो गोत्रे |६|१|३२|| बिडबिरी - च | ७|१|१२९॥
बिदादेर्वृद्धे |६|१|४१॥
बिमेतेर्भीष् च | ३ | ३ | ९२ ॥ 'बिल्वकीयादे यस्य | २|४|९३॥
ब्रह्मणः १७|४|५७||
ब्रह्मणस्त्वः ।७/१/७७ ।।
ब्रह्मणो वदः | ५|१|१५६।।
ब्रह्मभ्रूणवृ - प् |५|१|१६१॥ ब्रह्महस्ति सः | ७|३|८३॥
ब्रह्मादिभ्यः | ५|१|८५ |
ब्राह्मणमाण- द्यः |६|२|१६||
बाह्मणाच्छंसी | ३|२|११॥