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श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम्
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टनण् ।५।१।६७।।
टस्तुल्यदिशि |६|३|२१०| टाङसोरिनस्यौ |१|४|५|
टाड्योसि यः | २|१|७||
टादौ स्वरे वा | १|४१९२॥
टौस्यनः । २|१|३७||
टौस्येत् | १|४|१९|| धेप्राशाच्छासो वा | ४ | ३ |६७॥ धेश्वेर्वा | ३ | ४|५९ ||
ट्वितोऽथुः |५|३|८३||
उ
|६|४|८४||
shra -
| ७|४|७६ ॥
डतरडतमी डतिष्णः-प् ।१|४|५४।। डत्यतु संख्यावत् | १|१|३९ ॥
डाच्यादी | ७ | २|१४९ ॥ डाच्लोहिता - षित् | ३|४|३०||
डित्यन्त्यस्वरादेः | २|9|११४|| डिद्वाणू |६| २|१३६|| डिन् | ७|१|१४७|| डीयश्व्यैदितः क्तयोः |४| ४ | ६१ ॥
इनः सः- श्वः |9|३|१८|| वितस्त्रिमक्-तम् |५|३|८४॥
ढस्तड्ढे |१|३|४२||
ण
कची |५|१|४८ ||
णश्च विश्रवसो वा |६|१|६५|| षमसत्परे स्यादि० | २|१|६०||
स्वराघोषाश्च | २|४|४|
णावज्ञाने गमुः | ४|४|२४||
णिज् बहुलं - षु | ३ | ४|४२ ॥
|५|४|३६||
णिद्वान्त्यो णव् |४|३|५८|| णिन् चावश्यणिवेत्त्यास - नः | ५|३|१११ ॥ णिश्रिसुकमः - ङः | ३|४|५८||
णिस्तोरेवाS - णि | २|३|३७|| णिस्नुश्रूयात्मने - त् | ३ | ४|९२ ॥ रनिटि |४|३|८३||
र्वा | २|३|८८|| णोऽश्नात् |७|१|१०|| णी क्रीजीङः |४| २|१०|
णौ सनि | ४|१|८८॥ णौ दान्तशान्त - तम् | ४|४|७४ ॥
णी मृगरमणे | ४|२| ५१|| - णौ सन्डे वा |४|४|२७||