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________________ प्रथमः सगः के द्वारा कहे गये वचनों (कथनों) को संचित करने वाले मुझ जैसे (गुप्तचरों) की वाणी तो समाचार देने तक ही सीमित होती है (केवल समाचार देना हमारा कार्य है-अब क्या करना है यह निर्णय आप करें)। सं० व्या०-स्वकीयसंदेशस्य अन्ते किरातः कथयति-अतीव कुटिल: स: कौरवेश्वरः दुर्योधनः कपटमाश्चित्य त्वां हन्तुमिच्छति । अतः तस्मिन् दुर्योधने करणीयः प्रतीकारः शीघ्र क्रियताम् । ननु फर्तव्यमपि त्वयैवोच्यतामिति चेत्तत्राहपरोक्तवचनसंग्राहकाणां अस्मद्विधानां वार्ताहारिणां गुप्तचराणां वचनानि तु केवलं समाचारज्ञापकान्येव भवन्ति । वार्तामात्रवादिनः वयं, न तु कर्तव्योपदेशसमर्थाः । अधुना किं कर्तव्यं कथं च कर्तव्यमिति वक्तुन वयं समर्थाः । अतः भवता सुविचार्य समुचितं कर्म करणीयम् । स०-परैः प्रणीतानि इति परप्रणीतानि (तत्पु०)। प्रवृत्तिः सारः यासां साः प्रवृत्तिसाराः (बहु०)। व्या-उद्यते-उत् + यम् + क्त, सप्तमी एकवचन । विधीयताम्-वि+ धा+लोट (कर्मणि)। चिन्वताम् -चि+ शतृ+ षष्ठी, बहुवचन । टि०-(१) गुप्तचर किरात अपने पद की मर्यादा को भली-भाँति जानता है और वह अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता है। गुप्तचर का काम तो केवल शत्रु पक्ष का यथार्थ समाचार देना है । गुप्तचर का यह काम नहीं है कि वह राजा को यह बतलाये कि उन्हें क्या करना चाहिए । 'आप यह कीजिए' यह उपदेश देना गुमचर का काम नहीं है । युधिष्ठिर को अब क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए इसका निर्णय उन्हें स्वयं करना है । (२) सामान्य से विशेष का समर्थन होने से अर्थान्तरन्यास अलंकार ।। घण्टापथ-तदिति । तत् तस्मात् त्वयि निम कपट कर्तुमुद्यते त्वां जिघांसावित्यर्थः । तत्र तस्मिन् दुर्योधने विधेयं कर्तव्यम् उत्तरम् प्रतिक्रिया आशु विधीयतां क्रियताम् । ननु कर्तव्यमपि त्वयैवोच्यतामिति चेत्तत्राह-परेति । परप्रणीतानि परोक्तानि । वचांसि चिन्वतां गवेषयतां माशां वार्ताहारिणामित्यर्थः। गिरः प्रवृत्तिसाराः वार्तामात्रसाराः खलु। 'वार्ता प्रवृत्तिवृत्तान्तः'
SR No.009642
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibhar Mahakavi, Virendra Varma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year1978
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size81 MB
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