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________________ प्रथमः सर्गः श्रियः कुरूणामधिपस्य पालनी प्रजासु वृत्तिं यमयुक्त वेदितुम् । स वणिलिङ्गो विदितः समाययौ युधिष्ठिरं द्वैतवने वनेचरः॥१॥ अन्वयः-कुरूणाम् अधिपस्य श्रियः पालनी प्रजासु वृत्तिं वेदितुं यम् अयुङ्क्त वर्णिलिङ्गी सः वनेचरः विदितः (सन् ) द्वैतवने युधिष्ठिरं समाययौ। शब्दार्थः-कुरूणाम् = कुरु देश (जनपद) के। अधिपस्य = राजा (अधिपति, दुर्योधन) की। श्रियः=राजलक्ष्मी का । पालनी= पालन करने वाली, रक्षा करने वाली, सुप्रतिष्ठित करने वाली। प्रजासु वृत्तिप्रजासम्बन्धिनी नीति को, प्रजा-नीति को, प्रजा के प्रति किये जाने वाले व्यवहार को, प्रजा-पालन की नीति को। वेदितुं जानने के लिये । यम् = जिसको (युधिष्ठिर ने) । अयुङ्क्त नियुक्त किया था (गुप्तचर के रूप में हस्तिनापुर भेजा था)। वर्णिलिङ्गीब्रह्मचारी के वेश को धारण करने वाला। सः वनेचरः वह किरात (वन में विचरण करने वाला भील)। विदितः (सन् )=जानकर, शत्रु ( दुर्योधन ) के सम्पूर्ण वृत्तान्त (गुप्त रहस्य ) को जानकर । द्वैतवने=द्वैत नामक वन (तपोवन) में। युधिष्ठिरं = युधिष्ठिर के पास। समाययौ-आया, प्राप्त हुआ, लौट आया, वापिस आया। हिन्दी अनुवादः-कुरुदेश के राजा (दुर्योधन) की राजलक्ष्मी का पालन करने वाली प्रजा-नीति (प्रजाविषयक नीति) को जानने के लिए (युधिष्ठिर ने ) जिसको नियुक्त किया था (गुमचर के रूप में हस्तिनापुर भेजा था), ब्रह्मचारी के वेष को धारण करने वाला वह किरात (वनवासी भील) (दुर्योधन के सम्पूर्ण वृत्तान्त को) जानकर द्वैतवन में युधिष्ठिर के पास वापस लौट आया।
SR No.009642
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibhar Mahakavi, Virendra Varma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year1978
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size81 MB
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