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चिन्ता : आग
चिंतन : चिराग
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एक जिन्दा जलाए
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एक जिन्दगी को रास्ता बताए
चिन्तन !
बड़ा भारी एवं बोझिल शब्द लगता है, आजकल चिंता के चौराहे पर भटकने वाले हम लोगों को ! पर जीवन को संतुलित एवं सामंजस्यपूर्ण बनाये रखने के लिए चिंता नहीं वरन् चिंतन की पगडंडी पर चलना जरुरी होता है! चिंतन की बरसती चाँदनी में ही निरंतर चिदानन्द की अनुभूति प्राप्य होती है !
बिखराव, तनाव एवं टकराव के साये में सिमटी - सिमटी जिन्दगी कहीं कुंठा, हताशा एवं संत्रास का शिकार न बन जाए, इसके लिए अत्यंत आवश्यक है कि चिंतन का नन्हा सा भी दिया भीतर में जलता रहे!
काफी वैविध्य भरा है, प्रस्तुत पुस्तक के पन्नों पर बिखरे चिंतन में!
हालांकि यह चिंतन सर्जक का स्व का है... निजी है... पर उन्होंने जीवन के हर एख पहलू को भिन्न-भिन्न अंदाज में जानने-परखने का सार्थक प्रयास किया है... शायद उनके चिंतन की कोई एकाध चिनगारी भी हमारे भीतर में चिंतन की मशाल जला दे ! और हमारा विचार - व्योम उस प्रकाश से आलोकित हो उठे!
वैसे जिन्दगी और कुछ भी नहीं है... जन्म से मौत तक का फासला! पर वह दूरी भी तय करने में आदमी हाँफ जाता है... कितने भी रुप रचाए.... कितने भी नाच दिखाए ... या कोई भी अंदाज सिखाए... आखिर जिन्दगी का मुकाम है मौत के नाम ! इसी बात को बड़ी खूबसूरती के साथ पुस्तक के आवरण में पेश किया गया है !
'A journey from Credal to Crematirium' or from 'Womb to Tomb' का सत्य जिसने समझा, जिसने पाया है, वह तो भीतर से मालामाल हो गया... वरना दिल की दुनिया तो सदियों से कंगाल है हमारी...!
माटी, माटी में मिल जाए या खाक हो जाए इससे पहले उसे महकाएँ चिंतन की सदाबहार खुशबू से ताकि मौत के बाद का सफर भी बरकरार रहे कुदरत के कारोबार में !
भद्रगुप्त विजय
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