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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी ___ ४६ २३. जन्म-मरण मिटेंगे कब? इ जन्म, जीवन और मृत्यु का चक्र अनादिकाल से गतिशील है। जानता हूँ कि जब तक इस चक्र की गति स्थिर नहीं होगी, तब तक सुख-दुःख के द्वंद्व मिटने वाले नहीं। फिर भी उस अनादि चक्र की गति स्थिर करने का पुरुषार्थ नहीं हो रहा है! जन्म हो गया है, जीवन व्यतीत हो रहा है और मृत्यु आगे मुँह फाड़ कर खड़ी है। मृत्यु का विचार जीवन के प्रति जाग्रत कर रहा है। मृत्यु के पश्चात जन्म और जीवन निश्चित है... परंतु 'जन्म कहाँ होगा? जीवन कैसा होगा?' केवल कल्पनाएँ संजोता रहता हूँ| अस्पष्ट कल्पना... संदिग्ध कल्पना! जितना भय मृत्यु से नहीं लगता है... उतना भय मृत्यु के बाद की कल्पना से लगता है। मृत्यु तो क्षणों का खेल है, उसका कोई भय नहीं। मृत्यु तो एक अनिवार्य प्रक्रिया है जीवन- परिवर्तन की। वह परिवर्तन कैसा होगा? जब शास्त्रों में पढ़ता हूँ : 'मरते हुए बंदर को एक मुनिराज ने श्री नवकार मंत्र सुनाया और बंदर का परिवर्तन देवरूप में हुआ,' मन आश्वस्त हो जाता है। जीवन में कभी भी नवकार मंत्र का जाप-ध्यान नहीं करने वाला बंदर मृत्यु के समय नवकार मंत्र के शब्द सुनकर देव बन सकता है... तो मेरे लिए देवगति निश्चित ही लगती है। परंतु जब दूसरे ग्रंथ में पढ़ता हूँ : 'मुनि ने क्रोध किया... मृत्यु के समय भी क्रोधवासना रह गई, तो उनको साँप की योनि में जाना पड़ा,' तो आत्मविश्वास हिल जाता है। बार-बार क्रोध, मान, माया और लोभ में फँसने वाला मैं - मेरा क्या होगा? नाटक के रंगमंच पर नृत्य करते-करते केवलज्ञानी बनने वाले आषाढाभूति का वृत्तांत पढ़ता हूँ तो मन प्रफुल्लित हो जाता है, 'मुझे सरलता से कैवल्य की उपलब्धि हो जाएगी..' परंतु जब घोर तपश्चर्या करने वाले तपस्वी का दुर्गति में पतन होने का किस्सा धर्मग्रंथ में पढ़ता हूँ, तो फिर मन उद्विग्न हो जाता है! उग्र संयम का पालन करने वालों को एकाध भूल से पशुयोनि में जाने की बात पढ़ने पर चित्त चंचल बन जाता है। 'अनेक बुराइयाँ होने के बावजूद, एकाध अच्छाई 'वीतराग' बनाती है... अनेक अच्छाइयाँ होने के बावजूद, एकाध बुराई दुर्गति में ले जाती है...' यह बात मेरे मस्तिष्क में घोर पीड़ा पैदा कर रही है। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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