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यही है जिंदगी __- दुःख, आपत्ति, संकट तो संसार में स्वाभाविक है। संसार का मानो स्वभाव है! - इनको भूतकाल में कोई नहीं मिटा सका है। न तीर्थंकर मिटा सके, न चक्रवर्ती।
- असंभव को संभव बनाने की चेष्टा बालचेष्टा है। - जो संभवित है, उसको पाने का पुरुषार्थ करना बुद्धिमत्ता है। - अशक्त मन को सशक्त बनाना संभवित है। - भयभ्रान्त मन को सुदृढ़ बनाना संभवित है। - कमजोर मन को सुदृढ़ बनाना संभवित है...। - खोखले मन को ठोस बनाना संभवित है...। बना लो मन को ऐसा निर्भय, सुदृढ़, सशक्त और ठोस! बस, फिर आने दो आंधी को, तूफान को और झंझावात को। वे हमें हिला सकेंगे, गिरा नहीं सकेंगे! - मामूली 'हार्ट-एटेक' आया... और गिर गया...! - थोड़ा-सा आर्थिक नुकसान हुआ... और गिर गया...! - थोड़ी-सी बदनामी हुई... और गिर गया...! - किसी ने धोखा दिया... और गिर गया...!
चारों ओर गिरे हुए मनुष्यों का श्मशान दिखायी दे रहा है आज । पौरुषहीन पुरुषों की संख्या बढ़ती जा रही है। दुःख और वेदना के चीत्कारों से भूमंडल आक्रान्त हो गया है। - शक्तिहीनता, सत्त्वहीनता और पौरुषहीनता - मन के गंभीर रोग हैं। मन की गंभीर बीमारी है। उसको मिटाने के उपाय तुरंत करने होंगे। - महामंत्र नवकार के स्मरण से | - परमात्मा के भावपूजन से। - तत्त्वज्ञान के गहन अध्ययन से.... -- सत्त्वशील पुरुषों के निरंतर समागम से मन सत्त्वशील बनेगा, शक्तिशाली बनेगा... निश्चल और निर्भय बनेगा।
ऐसे मन से जीवनयात्रा करने का आनंद अद्भुत होता है। मनुष्य-जीवन इस तरह जीना है!
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