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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २५३ - इसलिए कहता हूँ कि बच्चों से प्रेमपूर्ण व्यवहार करें। - पिता का प्रेम पैसे पर केन्द्रित हो गया है। - माता का प्रेम फैशन पर केन्द्रित हो गया है। - बच्चों को अब माता की गोद नहीं मिल रही है, नौकर की गोद मिलती है। दुर्व्यसनी नौकरों की छाया में बच्चे पलते हैं। - माताएँ अपना घर भूलती जा रही हैं, परिवार को भूलती जा रही हैं। - उनको अब क्लबें, सिनेमागृह, सभागृह... वगैरह प्रिय लग रहे हैं। - बीमार बच्चों के पास नर्स रहने लगी है, माता मार्केटिंग के लिए चली जाती है। -- बीमार बच्चों को दवाई मिलती है, परंतु माता का सान्निध्य और वात्सल्य नहीं मिल रहा है। ___ - बच्चों को उच्च शिक्षा मिल रही है, परंतु दूर-दूर हॉस्टलों में| उनको सहजीवन... पारिवारिक जीवन का आनंद नहीं मिल रहा है। रसोईदारों के हाथ की रसोई मिलती है, माता के वात्सल्यपूर्ण हाथों की रसोई दुर्लभ हो गई है। - वात्सल्य है कहाँ? - किसका किसके प्रति वात्सल्य है? - वात्सल्य का झरना अदृश्य हो गया है। - स्वार्थ, अभिमान, दुराग्रहों के पत्थर ही पत्थर दिखाई देते हैं। - संस्कृति की जननी स्वयं विकृति की शिकार हो गई है। - वात्सल्य का दिखावा कर, क्रूरता का नृशंस व्यवहार करने वाले मातापिता 'पूजनीय' कैसे बन सकते हैं? उनके चरणों में प्रेम से बच्चे अपना सर कैसे झुका सकते हैं? सिर झुकता है, वात्सल्य के चरणों में। - फैशनेबल कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक खिलौने और सौन्दर्य के प्रसाधनों में बच्चों की पराधीन जिन्दगी आनंद ले रही है। ___- जब देखता हूँ बच्चों की सृष्टि को, हृदय करुणा से भर आता है। बरबाद होती हुई उनकी जिन्दगी को बचाने के लिए प्रयत्न करता हूँ, तो उनके मातापिता विघ्न बन जाते हैं... आखिर, बच्चों पर अधिकार तो उनका है न! ___- बिना वात्सल्य की, बिना ज्ञानदृष्टि की अधिकार-भावना पराधीन बच्चों की जिन्दगी को बरबाद कर रही है... हे प्रभो! तू ही रक्षा कर। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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