SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २२८ १०३. कोई तुम्हें देख रहा है! वे पिता-पुत्र थे। पिता चोरी करता था, पुत्र को साथ में रखता था। एक दिन दोनों एक खेत में चोरी करने गये। पिता ने पुत्र से कहा : 'बेटा, तू यहाँ खेत के बाहर बैठना, कोई आता हुआ दिखाई दे तो मुझे सावधान कर देना । मैं फसल काट कर इकट्ठी करता हूँ।' पिता फसल काट कर इकट्ठी करने लगा। उधर लड़के ने आसमान में देखा । उसको लगा कि कोई दिव्य आकृति उसको देख रही है। उसको एक संत पुरुष का उपदेश याद आ गया : 'भगवान हमेशा हमें देखता रहता है...।' लड़का चिल्लाया : 'पिताजी, हमें भागना चाहिए... देखनेवालों ने देख लिया है!' पिता घबराया। काटी हुई फसल छोड़कर पुत्र के साथ भागने लगा। घर पर जाकर पिता ने पुत्र से पूछा : 'बेटा, कौन था वह देखनेवाला?' पुत्र ने कहा : 'भगवान ।' पिता पुत्र के निर्दोष चेहरे को देखता रहा। उसने चोरी करने का पाप छोड़ दिया। - ऊपर... सबसे ऊपर... 'सिद्धशिला' है। वह लोकान्त है। - वहाँ अनंत-अनंत शुद्ध-बुद्ध-सिद्ध आत्माएँ रहती हैं। - जो जीवात्मा सभी कर्मबंधनों से मुक्त होती है वह वहाँ चली जाती है। अनंत काल वहीं पर स्थिर रहती है। - वे सिद्ध भगवंत, समग्र जड़-चेतन विश्व को निरंतर देखते हैं और जानते हैं। - उन सिद्ध भगवंतों को हम पूजनीय मानते हैं, श्रद्धेय मानते हैं। क्या हमें स्मृति है कि - हमारी हर क्रिया को वे देखते हैं। - हमारे हर विचार को वे जानते हैं। - हमारी कोई भी क्रिया, हमारा कोई भी विचार उनसे छिपा हुआ नहीं रह सकता है। ___- वैसे, जो भी केवलज्ञानी होते हैं, पूर्णपुरुष होते हैं, वे हमारे सभी कार्यों को और विचारों को देखते हैं, जानते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy