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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २०२ S ९२. परमात्मा की जीवनयात्रा हे अरिहंत! बाल्यावस्था में भी आप विशिष्ट ज्ञानी होते हैं। ज्ञानप्रकाश से आपकी प्रतिभा देदीप्यमान होती है। आपके ज्ञान से और आपके रूप से संसार के नर-नारी मुग्ध हो जाते हैं। आपके ज्ञान-विज्ञान का वैभव संसार को चकित कर देता है। हे भगवंत! आपमें जवानी का उन्माद नहीं होता है। यदि आपका, संसारसुख भोगने का 'कर्म' अवशिष्ट होता है तो आप निरागी चित्त से शादी करते हैं। संसार-सुख भोगते हुए भी आप विरक्त होते हैं। ज्यों ही वह प्रेरक कर्म नष्ट होता है, आप ब्रह्मचर्य को धारण करते हैं। शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श के विषयों में आप अनासक्त होते हैं। आत्मभाव में विशुद्ध अध्यवसायों में लीन रहते हैं। हे प्रभो! आपका राज्यपालन करने का कर्म यदि शेष होता है तो आप राज्यपालन भी करते हैं। प्रजा का वात्सल्य भाव से पालन करते हैं फिर भी आपका हृदय विरागी होता है... आप प्रतिपल स्वभाव में जाग्रत होते हैं। जब राज्यपालन की अवधि पूर्ण होती है... 'लोकान्तिक देव' अपूर्व भक्तिभाव से आपके चरणों में आते हैं और विनम्र भाव से प्रार्थना करते हैं : 'भयवं! तित्थं पवत्तेहि' 'भगवंत, धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करो'। आप तो स्वयं संबुद्ध होते हैं। आपको किसी के भी धर्मोपदेश की अपेक्षा नहीं होती है। आपको किसी भी व्यक्ति की प्रेरणा की अपेक्षा नहीं होती है। आप तो अपने ज्ञान से आलोकित मार्ग पर चलते रहते हैं। आप राज्यों में घोषणा करवाते हैं - 'आईये, सबको इष्ट वस्तु प्राप्त होगी।' आप एक वर्ष तक महादान देते हैं। लाखों लोगों की दरिद्रता आप दूर करते हैं। अपने कर्तव्य का पालन करते हुए देव आपके महल में धन का ढेर लगाते रहते हैं। हे जिनेश्वर! जब संसारवास का त्याग करने का दिन आता है तब देवेन्द्र इकट्ठे होते हैं और आपका अभिषेक करते हैं। श्रेष्ठ वस्त्र से आपकी कोमल देह को For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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