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यही है जिंदगी
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व ८९. समय को सम्हाल कर रखें ३
बस॒न्ड रसेल ने लिखा है : 'फुरसत का समय बुद्धिपूर्वक भर देने की शक्ति होना संस्कृति का अन्तिम प्रदान है।' ___ परन्तु 'रस्किन' तो कहता है कि मनुष्य को फुरसत ही नहीं होनी चाहिए | उसने लिखा है : 'यदि तुम्हें ज्ञान की प्यास है तो तुम्हें परिश्रम करना होगा। यदि तुम्हें खुराक की आवश्यकता है तो भी तुम्हें मेहनत करनी होगी। यदि तुम्हें खुशी चाहिए, तो भी मेहनत के बिना नहीं मिलेगी। मेहनत ही कानून है।' ___ - जो मनुष्य आरामप्रिय होता है, किसी भी प्रकार की मेहनत करना नहीं चाहता। ___ - आरामतलब व्यक्ति यदि थोड़ा बुद्धिमान होगा तो वह हर बात में आरामप्रियता की वकालत करता रहेगा।
- आलसी और प्रमादी मनुष्य अपनी फुरसत के समय का उपयोग बुद्धिपूर्वक नहीं करते।
- वही आलसी और प्रमादी होता है, जिसको समय की संपत्ति का मूल्यांकन करना नहीं आता है। कुछ भी निर्माण की दृष्टि जिनके पास नहीं होती है।
- जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों को नहीं समझते हैं, जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन होते हैं, वे लोग तन-मन की शक्ति होने पर भी मेहनत, पुरुषार्थ नहीं करते हैं। ऐसे लोग परिवार में अप्रिय बनते हैं, समाज में नगण्य बनते हैं।
- हर कार्य की सफलता का आधार मनुष्य का पुरुषार्थ है, मेहनत है। थके बिना मेहनत करने वाला मनुष्य ही सफलता के शिखर पर पहुँचता है। ___- मेहनत करते-करते जब विश्राम की आवश्यकता हो, विश्राम कर लें। परन्तु विश्राम के समय का उपयोग भी बुद्धिपूर्वक कर लें। हर क्षण को 'शुभनिर्माण' की जननी बना लें। क्योंकि मनुष्य-जीवन की एक-एक क्षण 'शुभ-जननी' बना लेने में ही बुद्धिमत्ता है। ___- जैसे व्यसनी लोग, व्यसन सेवन में संपत्ति का दुर्व्यय करते हैं, वैसे आलसी-प्रमादी लोग समय का दुर्व्यय करते हैं।
- निकम्मे... आलसी मनुष्य ही घर में, समाज में और नगर में उपद्रव पैदा
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