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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी १७६ ८३. मोक्ष कहाँ है? क्या है? - करीबन दो हजार वर्ष पूर्व, एक विद्वान के मन में उग्र विचार आया : 'साधु को वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। क्योंकि वस्त्र पहनने से वस्त्र पर ममत्व होता है, और ममत्व आत्मा का मोक्ष नहीं होने देता है।' - उस साधु ने वस्त्र उतार फेंके, नग्न रहने लगा | जो साधु वस्त्र पहनते थे, उनको वह साधु नहीं मानता था, उनके प्रति उसने विरोध जाहिर किया। ___ - 'दिशाएँ ही मेरे वस्त्र हैं,' ऐसा वह लोगों को समझाने लगा। जो उनकी बात मानते उनको वह अपना अनुयायी मानने लगा। ___ - उसने वस्त्र का ममत्व छोड़ा, परन्तु अनुयायियों का ममत्व जोड़ा, अपने 'संप्रदाय' का ममत्व बाँध लिया । - दिशाएँ क्या कभी वस्त्र बन सकती हैं? वस्त्र जो काम करता है, वह काम क्या कभी भी दिशाएँ कर सकती हैं? कोई नंगा मनुष्य आपके पास आकर कहे कि 'मुझे वस्त्र चाहिए...' आप उसको क्या कहेंगे कि 'ये दिशाएँ ही वस्त्र हैं, तू पहन ले।' - हजारों... लाखों लोगों ने यह आश्चर्यजनक बात मान ली। दुनिया है ना? मूों ने मान ली और बुद्धिमानों ने भी मान ली। वस्त्र का राग यदि मोक्षप्राप्ति में बाधक है तो वस्त्र और वस्त्रधारी का द्वेष मोक्षप्राप्ति में बाधक नहीं है क्या? मोक्षप्राप्ति में क्या-क्या बाधक है, यह जानते हो? - अपने पंथ का राग, दूसरे पंथों के प्रति द्वेष करवाता है। यह राग-द्वेष, वस्त्र के राग-द्वेष से क्या ज्यादा हानिकर्ता नहीं है? - खैर, 'वस्त्र के प्रति राग हो जाता है' इस दृष्टि से वस्त्र का त्याग कर दिया, परन्तु 'शरीर के प्रति राग हो जाता है, तो क्या शरीर का त्याग कर दोगे? - शरीर पर राग होता है न? - शरीर पर का राग मोक्षप्राप्ति में बाधक है न? - तो क्या आत्महत्या कर लेनी चाहिए? For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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