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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यही है जिंदगी Lux www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४. करुणा माँगें... परमात्मा की मैंने एक व्यक्ति को पूछा : 'पुनः वही तपश्चर्या क्यों करना चाहते हो?’ उसने कहा : ‘और तो कुछ नहीं, परन्तु घरवालों की ओर से सहानुभूति तो मिलेगी । ' मनुष्य चाहता है अपने प्रति किसी की सहानुभूति ... किसी की प्रेमसिक्त करुणा! जिसको वह चाहता है, जिसको वह अपने स्वजन मानता है, उनकी ओर से विशेष रूप से यह अपेक्षा रहती है । १४९ यदि सहानुभूति मिलती है, तो मनुष्य अपने आप को सुखी मानता है ! - यदि सहानुभूति नहीं मिलती है, तो मनुष्य अपने आप को दुःखी मानता है! - सुख और दुःख परसापेक्ष बना दिये... यही क्या घोर अज्ञान नहीं है? यह मनोवृत्ति जीवन को विवश - परवश करने वाली नहीं है ? - दूसरों की सहानुभूति पाने के लिए तपश्चर्या! कष्ट सहन करने वालों के प्रति लोगों में करुणा पैदा होती ही है! रास्ते पर ऐसे खेल करने वालों को मैंने देखा है कि जो लोगों में दर्शकों में अनुकम्पा पैदा करने के लिए लड़के के मुख में कटारी घुसेड़ते थे... खून बहता ... दर्शकों के मुँह से 'अररर...' जैसे करुण स्वर निकल जाते ... । फिर वह लड़का... खून से सने हुए मुँहवाला लड़का दर्शकों के पास जाकर पैसा माँगता था... और दर्शक कुछ न कुछ देते थे! मैं तपश्चर्या करूँगा तो घर के लोग मेरे प्रति कठोरतापूर्ण व्यवहार नहीं करेंगे... वे सोचेंगे - 'उसका आज उपवास है... उसको परेशान मत करो.... मैं कोई काम करूँगा तो घर के लोग कहेंगे- 'यह काम तुम मत करो, क्योंकि तुम्हारी तपश्चर्या चल रही है...।' कोई हमारे लिए ऐसे सहानुभूति भरे शब्द बोलता है, तो हमें खुशी होती है! हमें खुशी चाहिए... इसलिए स्वजनों की सहानुभूति चाहिए... इसलिए तपश्चर्या! For Private And Personal Use Only • माता जब बच्चे की उपेक्षा करती है, बच्चे के प्रति ध्यान नहीं देती है तब - बच्चा रोता है... पैर पछाड़ता है... भोजन नहीं करता है... स्नान नहीं करता
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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