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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी १३१ सोना नहीं होगा, यह तो तुम नहीं कह सकते!' उसने कहा : 'हाँ, यह तो मैं नहीं कह सकता।' ___ आश्चर्य! बहुत बड़ा आश्चर्य! होता है ऐसा संसार में। पहले दिन ही एक फूट की गहराई में, सोने की खदान शुरू हो गई! वह आदमी जिसने पहले खरीदी थी पहाड़ी, छाती पीटकर पहले भी रोता था और बाद में तो और भी ज्यादा छाती पीटकर रोने लगा! उसने पहाड़ी खरीदने वाले को कहा : 'देखो भाग्य का खेल!' उसने कहा : 'भाग्य का नहीं, तुमने दाँव पूरा नहीं लगाया, एक फूट और खोदकर देख लेते...।' __पहले पहाड़ी पाने की तीव्र इच्छा बनी, जब सोना नहीं मिला, पहाड़ी बेचने के लिये बेचैन बना! बेच दी पहाड़ी, फिर जब सोना निकला, तब पुनः उसे पाने की इच्छा...। ___पाने और छोड़ने की ही क्या यह जिन्दगी है? पाने में भी राग-द्वेष और छोड़ने में भी राग-द्वेष! राग-द्वेष में से क्लेश... अशांति... संताप...। इस प्रकार अनंत जन्म बीत गये। कुछ ऐसा पा लूँ... फिर कुछ भी पाने की इच्छा ही नहीं रहे! एक बार जो छोड़ना पड़े, छोड़ दूँ, पुनः कुछ छोड़ने की इच्छा ही न रहे। सब कुछ दाँव पर लगा देना होगा। कोई घबराहट नहीं चाहिए, कोई अधीरता नहीं चाहिए। बाहर से बरबाद हो जाना पड़े तो बरबाद होना मुझे स्वीकृत है, परन्तु मेरा भीतर का आनंद बढ़ता ही रहेगा! भीतर का आनंद ही तो मुझे पूर्णानन्द की ओर ले जायेगा। बाहर का सब कुछ खो जाए तो खो जाए, यदि मुझे भीतर का आनंद मिलता है! रास्ता लम्बा है। मैं जानता हूँ कि इस यात्रा में कइयों ने धीरता गँवायी __है, कई वापस लौटे हैं, कई भयभीत होकर मार्गभ्रष्ट बने हैं। मैं जानता हूँ कइयों को उनके मन ने धोखा दिया है। अंतर्यात्रा में भी कुछ पाने की, कुछ छोड़ने की आदत मन नहीं छोड़ता है! प्रिय-अप्रिय की अनेक कल्पनाओं में मन जब उलझता है, तो पाने का और छोड़ने का खेल शुरू हो जाता है। ज्यों यह खेल शुरू हुआ कि राग-द्वेष... ईर्ष्या... अशांति... संताप वगैरह के आन्तरद्वन्द्व शुरू हो जाते हैं। सब कुछ दाँव पर लगा दिया है। मन-वचन और काया सब कुछ दाँव पर लगाकर अंतर्यात्रा पर निकल पड़ा हूँ। हालाँकि अभी बहुत आगे जाना बाकी For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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