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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी १२४ ६२. लगाव नहीं अलगाव रखें । जब मनचाही दो-चार अनुकूलताएँ मिल गई, तब मैंने मान लिया कि ये अनुकूलताएँ सदैव बनी रहेंगी! चार-पाँच वर्ष तक वे अनुकूलताएँ वैसी की वैसी बनी रही, मेरा विश्वास दृढ़ हो गया। चार-पाँच वर्ष में उन वस्तुओं से और व्यक्तियों से लगाव हो गया, आन्तर स्नेह बंध गया... और एक दिन मेरी धारणाएँ गलत सिद्ध हो गई! मेरा विश्वास गलत सिद्ध हो गया...। अपनेपन के मेरे खयाल गलत सिद्ध हुए। __ मैंने अपने भीतर को टटोला! मेरी आत्मभूमि पर बहता था जो वैराग्य का झरना, मैं उसको खोजने लगा...। खूब-खूब खोजा उस वैराग्य के स्रोत को, परन्तु नहीं मिला...| वह सूख गया था... केवल निशान बचा था। मेरे श्वास रुक गये... आँखें गीली हो गयीं... मैं बैठ गया। 'यह क्या हो गया? वैराग्य का स्रोत सूख गया? अब मैं कहाँ जाकर स्नान करूँगा? कहाँ जाकर शीतलता प्राप्त करूँगा? किस जगह जाकर अपना खेद-उद्वेग दूर करूँगा?' ___ हालाँकि यह मेरी ही भूल का परिणाम था। पाँच-पाँच वर्ष तक मैंने आत्मभूमि की ओर देखा ही नहीं था... वैराग्य के झरने की खबर भी नहीं ली थी... उसमें स्नान भी नहीं किया था। मैं राग और रागी के विश्वास में बहता रहा था। स्नेह और प्यार का विषप्रयोग कर रहा था। और जिस हृदयगिरि से वैराग्य का प्रवाह निकला था... वह हृदयगिरि ही जड़-सा बन गया था... अत्यंत घनीभूत बन गया था। हृदयगिरि द्रवित हो... तभी पुनः वैराग्य का प्रवाह निकल सकता था। सही बात थी, पाँच-पाँच साल से हृदय को द्रवित करने वाली कोई घटना ही नहीं घटी थी न! हाँ, जब वैसी कोई अनहोनी दुःखदायी घटना बनती है... तब तो हृदय द्रवित होता है! एक बार द्रवित होने के बाद, दुःखपूर्ण संसार का दर्शन-चिन्तन भी उस विरक्ति के प्रवाह को प्रवाहित बनाये रखता है। हृदयगिरि को द्रवीभूत करने वाली दुर्घटना बन ही गई...! आज नहीं तो कल, दुर्घटना बनने वाली ही थी... इस बात का कोई अफसोस नहीं है...! अन्तःचक्षु खोलने वाली दुर्घटनाएं होती रहें... तो मैं ज्यादा प्रसन्न बनूँगा... मुझे ज्यादा खुशी होगी। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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