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यही है जिंदगी
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व ५४. पाप तुम्हारे खोल दो ३
'यहाँ अपने पापों का सच्चे हृदय से प्रकाशन करो और पापमुक्त बनो... पापों का पश्चात्ताप, मनुष्य को शुद्ध-बुद्ध बनाता है।'
कच्छ की धरा पर ऐसा एक पावनकारी तीर्थ देखा! 'अंजार' कच्छ के पुराने नगरों में से एक ऐतिहासिक नगर है। अंजार के बाहरी प्रदेश में 'जेसल-तोरल की समाधि' आज भी मौजूद है। जेसल डाकू था, हत्यारा था...। जेसल की नैया जब समुद्र में डूब रही थी, उस समय तोरल ने उसके पास, पापों का पश्चात्ताप करवाया था... जेसल ने अपने सारे पाप दिल खोलकर बता दिये थे और उसकी नैया पार लग गई थी।
आज भी, कई स्त्री-पुरुष जेसल-तोरल की इस समाधि के दर्शन करने आते हैं, दर्शन कर... रो पड़ते हैं... आँसू बहाते हुए अपने पाप वहाँ प्रकाशित करते हैं... हृदय का बोझ दूर होता है... आँखें निर्मल होती हैं और प्रसन्नचित्त लौट जाते हैं। पता नहीं कि यहाँ से जाने के बाद वे पुनः वैसे पाप करते हैं या नहीं! जेसल ने तो पुनः वैसे पाप नहीं किये थे। __ पापों का प्रतिक्रमण करना, पापों का इकरार करना, परमात्मा से पापों की क्षमा माँगना... वगैरह भिन्न-भिन्न धर्मों में बताया गया है। कुछ श्रद्धावान् स्त्रीपुरुष वैसी क्रियाएँ करते भी हैं..., परन्तु पता नहीं कि वे सचमुच पापों का पश्चात्ताप करते हैं, या सिर्फ एक क्रिया करने से ही संतोष महसूस करते हैं |
एक दिन याद आता है... सांवत्सरिक प्रतिक्रमण हो रहा था... एक भाई वंदित्तुसूत्र [पापों का पश्चात्ताप करने का सूत्र] बोल रहे थे और रो रहे थे! वे वास्तव में पश्चात्ताप कर रहे थे... उनका सूत्र सुनते-सुनते... और उनको देखते-देखते कइयों की आँखें चूने लगी थी। पापों का सच्चा पश्चात्ताप हो रहा था।
परन्तु, मनुष्य पाप छिपाने में निपुण है। पशु पाप करता है अवश्य, परन्तु छिपाता नहीं है। मनुष्य पाप करता है और छिपाता है! क्योंकि वह पापाचरण से नहीं डरता है, किन्तु दुःख से डरता है! 'मैं पाप करूँगा तो अशुभ कर्मबंध होगा, इससे भविष्यकाल में मुझे तीव्र
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