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यही है जिंदगी
जिस विषय का मन से और तन से त्याग किया जाता है, उस विषय का आकर्षण टूट जाता है। दीर्घकालीन विषय-त्याग से विषयासक्ति टूट जाती है। अलबत्ता, त्याग केवल शरीर से नहीं, मन से भी होना चाहिए। त्याग करने पर, जिस विषय का त्याग किया हो, उस विषय का मानसिक आकर्षण उठ सकता है। परन्तु 'चित्तनिरोध' की लगातार साधना करने पर विषयासक्ति मर जाती है।
वैषयिक वासना को स्वीकार मत करो। वासना पर विजय पाने का सदैव पुरुषार्थ करते रहो। विजय पाने में भले ही दो-चार जन्म लेने पड़ें... जनमजनम तक वासनाओं से लड़ते रहो, वासना अवश्य नष्ट होगी। आत्मा की विजय होगी। आत्मा की वासना पर विजय ही तो मुक्ति है!
आत्मा को आत्मगुणों में तृप्त करें। स्वभाव दशा में तृप्ति का अनुभव करें। आत्मगुणों में तृप्ति पा सकते हो। वैषयिक सुखों में कभी भी तृप्ति नहीं पा सकोगे। आत्मा के ज्ञानगुण में, दर्शनगुण में, चारित्रगुण में तृप्ति पाने का प्रयत्न करें। यह तृप्ति अविनाशी होगी, अखंड होगी। यह तृप्ति पाने पर विषयों की अतृप्ति मिट जायेगी।
तृप्ति से मुक्ति नहीं, अतृप्ति से मुक्ति पाने का प्रयत्न करें। यह प्रयत्न है, विषयोपभोग से विरक्ति का ।
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