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आभिग्रहिक मिथ्यात्व का सम्मोहन प्रबल होता है, परंतु उस सम्मोहन को दूर करने के उपाय हैं, प्रबल निमित्त मिलने से सम्मोहन दूर हो जाता है। आज भी ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं। अपनी मिथ्या मान्यताएँ छोड़ देते हैं और सत्य का स्वीकार कर लेते हैं । सत्य का स्वागत करने के लिए मन के द्वार खुले रहने चाहिए। मन में जब सत्य का प्रकाश होता है तब भीतर से मधुर आवाज़ उठती है
"अरिहंतो मह देवो जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो।
जिणपन्नत्तं तत्तं... इस सम्मत्तं मए गहि।।" अर्हन्त परमात्मा ही सच्चे परमात्मा हैं, सुसाधु ही मेरे गुरु हैं और सर्वज्ञप्रणीत तत्त्व ही मेरा धर्म है!
मिथ्यात्व का सम्मोहन दूर होते ही, सम्यग्दर्शन होता है। सही वास्तविक तत्त्वों का दर्शन होता है। परोक्ष के विषय में निःशंक श्रद्धा पैदा होती है। आत्मा, परलोक, कर्म, स्वर्ग, नर्क, मोक्ष... वगैरह तत्त्वों की निःशंक प्रतीति होती है। बुद्धि निर्मल बनती है। शास्त्रों का अर्थघटन सही रुप से होता है। असत्य का आग्रह छूट जाता है।
चेतन, तेरे प्रश्न का समाधान हो गया होगा। समाधान पाना ही है। समाधान से शांति और समाधि प्राप्त होती है। स्वस्थ रहे, यही मंगल कामना,
- भद्रगुप्तसूरि
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