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हो सकता है कोई जीव प्रकृष्ट शातावेदनीय कर्म लेकर जन्मा हो, उसको जीवन में कभी अशातावेदनीय उदय में नहीं आए! वैसे कोई जीव उत्कृष्ट अशातावेदनीय कर्म बाँधकर जन्मा हो, उसके जीवन में कभी शाता का अनुभव नहीं हो। देवों के जीवन में प्रायः शाता का ही अनुभव होता है और नारकी के जीवों को प्रायः जीवनपर्यंत अशाता का ही अनुभव होता है।
'प्रायः' शब्द का प्रयोग इसलिए किया है कि देवों को जब अपने मृत्यु का ज्ञान होता है तब वे दुःखी हो जाते हैं और नारकी के जीव तब शाता का क्षणिक अनुभव करते हैं, जब तीर्थंकरों के पांच कल्याणक होते हैं। ये अपवाद हैं। __ चेतन, यहाँ... इस जीवन में जब शरीर को कोई दुःख आए, तब अपने ही अशातावेदनीय कर्म को कारण मानना और समताभाव से वेदना सहन करना। परमात्मा की शरण लेना।
चिंतन करना इस पत्र पर | स्वस्थ रहे - यही मंगल कामना,
- भद्रगुप्तसूरि
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