________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
कर्म के उदय से भिक्षा नहीं मिलती है, अल्प भिक्षा मिलती है, वैसे वीर्यांतराय कर्म के उदय से धर्मपुरुषार्थ में निरुत्साह आ जाता है।'
उस मुनिराज को धर्मपुरुषार्थ बताया। वे करते रहे व पुरुषार्थ और वीर्यांतराय कर्म को मंद कर दिया ।
चेतन, थोड़े वर्षों से तू 'डिप्रेशन' नाम का रोग सुनता होगा । 'डिप्रेशन' का मूल कारण 'वीर्यांतराय कर्म' का उदय है। जितना उदय प्रबल, उतना ही डिप्रेशन ज्यादा! कोई बात या कोई वस्तु उसको सुख नहीं दे सकती है। वह निराशा की गहरी खाई में गिर पड़ता है। डॉक्टरों की दवा का भी कोई असर नहीं होता है। उसकी हालत बड़ी दयनीय बन जाती है।
-
www.kobatirth.org
चेतन, वह वीर्यांतराय कर्म, जीव कैसे बाँधता है, तू जानता है? शायद नहीं जानता होगा। इस कर्म के बन्धहेतु जानने ही चाहिए, जिससे तू सावधान रहेगा और वैसे कृत्य नहीं करेगा ।
मंत्र से, तंत्र से या यंत्र से दूसरे जीवों की शक्ति का पतन करना या
करवाना।
-
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दूसरे जीवों की, क्रोध से, वैर से और लोभ से हिंसा करना, मारना,
दूसरे जीवों को बाँधना,
दूसरे जीवों को अपंग बना देना,
• अंगोपांगों का छेदन-भेदन करना,
-
- कान, आँख, नाक वगैरह इंद्रियों की शक्ति का नाश करना,
मार-मार कर मूर्च्छित कर देना जीव को ।
शक्ति होते हुए भी धर्मपुरुषार्थ नहीं करना।
चेतन, यह सब करने से वीर्यांतराय कर्म बँधता है।
-
तेरा वह मित्र, एक बार तू उसको मेरे पास ले आया था, वह उसकी पत्नी को मारता है न? इसी वजह से उसकी पत्नी पुनः पुनः बेहोश होकर जमीन पर गिर जाती है, उस मित्र को कहना कि तूने वीर्यांतराय कर्म कितना प्रगाढ़ बाँध है? जब यह कर्म अपना प्रभाव बताएगा.. तब तेरी क्या स्थिति बनेगी?
तप करने की शक्ति होते हुए भी प्रमाद से तप नहीं करता है, सेवा करने को, वैयावच्च करने की शक्ति होते हुए भी जो प्रमाद से सेवा नहीं करता है, तीर्थरक्षा
६२
For Private And Personal Use Only