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कभी कोई पुण्यशाली को 'उपभोगांतराय' कुछ वर्षों में उदय ही नहीं आया हो। वह सभी प्रकार के सुखों का उपभोग करता है। वैसे भोगांतराय कर्म भी उदय में नहीं आता है तो वह सभी प्रकार के रसास्वाद कर सकता है! इच्छानुसार खाता-पीता है! ___ 'बंधे हुए कर्म आत्मा में हो सकते हैं, परंतु उन कर्मों का उदयकाल नहीं आया हो... अथवा बँधे हुए कर्म-भोगांतराय-उपभोगांतराय, शिथिल हों, बिना प्रभाव बताये ही क्षीण हो गए हों! यदि आत्मा के साथ लगे हुए हैं वे कर्म, उसका उदयकाल आने पर अपना प्रभाव बताते हैं।
- कुछ जीवों को जन्म से ही भोगांतराय-उपभोगांतराय कर्म का उदय होता
- कुछ जीवों को तरुण-अवस्था में, यौवनकाल में... प्रौढ़ावस्था में अथवा वृद्धावस्था में ये कर्म उदय में आते हैं।
- लाभांतराय कर्म भी, जीवन में कभी भी उदय में आ सकता है! तू दुनिया में देखता है कि कोई मनुष्य अपने जीवन में ४० वर्ष तक बहुत रुपये कमाता है... बाद में नहीं कमाता है! ५० वर्ष तक जो चाहे वह खा सकता है, पी सकता है और विषयभोग कर सकता है, बाद में भोगोपभोग में कुछ प्रतिबंध आ जाते हैं! इच्छानुसार खा नहीं सकता है... पी नहीं सकता है, पहन नहीं सकता है, संभोग नहीं कर सकता है। जीवन की किसी भी उम्र में यह स्थिति पैदा हो सकती है। कर्मों की इस
अनिश्चितता से सारी दुनिया परेशान है। ग़रीब कभी श्रीमंत बन जाता है, श्रीमंत कभी ग़रीब बन जाता है! प्रियजनों का कभी संयोग होता है, कभी वियोग हो जाता है! कभी इच्छानुसार रंग-राग और भोगविलास कर सकता है, कभी इच्छा होते हुए भी रंग-राग और भोगविलास नहीं कर सकता है।
इन बातों के निमित्त भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, मूल कारण 'अंतराय कर्म' होता
है।
श्री हनुमानजी की माता अंजना का जीवनवृत्त तूने पढ़ा है न? २२ वर्ष तक पति का वियोग रहा। पति के मन में अंजना के प्रति तीव्र अभाव पैदा हो गया था, जब कि अंजना निर्दोष और अकलंक थी। परंतु, पूर्वजन्म में अंजना की आत्मा ने, अपनी शोक्य रानी की जिनमूर्ति चुरा कर, रानी को प्रिय जिनमूर्ति से वियोग करवाया था! एक राजा की वे दोनों
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