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हिंसा-झूठ वगैरह पापों का आचरण... यह है योग का कार्य! जब तक योग, कषाय के सहायक के रूप में काम करता है... तब तक ऐसे काम होते हैं।
इस चांडाल चौकड़ी के पूरे सहयोग से रागद्वेष, कर्मबंधन में निमित्त बनते हैं। रागद्वेष अकेले तो कुछ नहीं कर सकते हैं। यदि मिथ्यात्वादि का सहारा छीन लिया जाय तो ये रागद्वेष अति मंद होकर, आत्मा के महान उपकारी भी बन सकते हैं।
चेतन, आज इस पत्र में मुख्य रूप से 'प्रकृतिबंध' की बात लिखी है। स्थितिबंध, प्रदेशबंध और रसबंध की बातें आगे लिखूगा । कर्मसिद्धांत को समझने के लिए इतना प्राथमिक ज्ञान होना आवश्यक है। तू स्वस्थ रहे, कुशल रहे, यही मंगल कामना,
- भद्रगुप्तसूरि
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