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चाहे विरति रहित सम्यग्दृष्टि मनुष्य हो, श्रावक-श्राविका हो, या साधु-साध्वी हो, यदि वे तप करते हैं, उग्र तप करते हैं, तो ‘सकाम निर्जरा' करते हुए वे देवगति का आयुष्यकर्म बाँध लेते हैं।
चेतन, जो सम्यग्दृष्टि नहीं है, मिथ्यादृष्टि है, परंतु घोर तपस्वी है, वह 'अकाम निर्जरा' करता है और देवगति का आयुष्य कर्म बाँध लेता है। अन्य-अन्य धर्मों का पालन करनेवाले यदि तपश्चर्या करते हैं, वे देवलोक में जा सकते हैं।
- जो मिथ्यादृष्टि जीव होते हैं वे ज्ञान-ध्यान से या तपश्चर्या से जो कर्मनिर्जरा करते हैं, उसको अकामनिर्जरा कहते हैं। ___ - जो सम्यग्दृष्टि जीव होते हैं, वे ज्ञान-ध्यान और तपश्चर्या आदि धर्मआराधना से जो कर्मनिर्जरा करते हैं, उसको सकामनिर्जरा कहते हैं। देवगति का आयुष्यकर्म, सकामनिर्जरा करनेवाले और-अकामनिर्जरा करनेवाले दोनों बाँध सकते हैं।
चेतन, तू जानता है कि आयुष्यकर्म जीवन में एकबार ही जीव बाँधता है। यानी बँध जाता है। हमको मालूम नहीं पड़ता है कि आयुष्य कर्म कब बँधता है। आगामी जन्म का आयुष्य-कर्म, वर्तमान जीवन में बँध जाता है। विशेष संभावना आयुष्य कर्म बँधने की, पर्वमहापर्व के दिनों में रहती है। इसलिए पर्व-दिनों में विशेष धर्म आराधना करना चाहिए। शुभ विचारों एवं शुभ-पवित्र क्रियाएँ करनी चाहिए। ताकि अच्छी गति का आयुष्यकर्म बँध सके।
- भद्रगुप्तसूरि
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