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से जो निर्दोष होती है उनको आत्महत्या नहीं करनी चाहिए। ज्यादा से ज्यादा, स्थानान्तर कर लेना चाहिए । विशिष्ट धर्म आराधना में मन-वचन-काया को जोड़ देने चाहिए। जरा सा भी आर्तध्यान नहीं करना चाहिए।
चेतन, इतना सत्व तो होना ही चाहिए । 'यश- अपयश, कीर्ति-अपकीर्तिपुद्गल भावों का तमाशा है-' यह बात दिमाग में लिखकर रखो । यश-कीर्ति के उदय में उन्मत्त मत बनना, अपयश - अपकीर्ति के समय भयाकुल नहीं बनना है । शेष कुशल,
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- भद्रगुप्तसूरि