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पूर्ण करके ही अग्रिम भव की आयु बाँधते हैं । अन्तर्मुहूर्त तक आयुष्यकर्म बाँधकर, उसका जघन्य अबाधाकाल बिताकर मरकर, गत्यन्तर में जा सकता है। ____ जब तक अग्रिम भव की आयु बाँधता नहीं और उसके अबाधाकाल को पूरा करता नहीं, तब तक वह मर भी नहीं सकता।
चेतन, इस प्रकार आहार-पर्याप्ति से लेकर मनःपर्याप्ति पर्यंत, पूर्व-पूर्व पर्याप्ति पूर्ण होने पर 'करण-पर्याप्त' और उत्तरोत्तर पर्याप्ति पूर्ण न होने से 'अकरण-अपर्याप्त' कह सकते हैं।
पर्याप्ति के विषय में 'पँचसंग्रह', 'नंदिसूत्र','लोकप्रकाश' वगैरह से विशेष - विशद जानकारी पा सकते हैं।
- भद्रगुप्तसूरि
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