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कि इन जीवों को 'सूक्ष्म-नामकर्म' का उदय होता है। इस नामकर्म के उदय से जीवों को ऐसे शरीर मिलते हैं कि जो आँखों से नहीं दिखाई देते। इन जीवों को तो मात्र सर्वज्ञ वीतराग ही देख सकते हैं। उन्होंने ही बताया है कि सूक्ष्म पृथ्वीकाय, सूक्ष्म अपकाय, सूक्ष्म तेउकाय, सूक्ष्म वायुकाय और सूक्ष्म वनस्पतिकाय ये जीव चर्मचक्षु के लिए अगोचर होते हैं। उन जीवों को सूक्ष्म नामकर्म का उदय होता है।
चेतन, संसार में जीवों की स्थूलता और सूक्ष्मता कर्मजन्य है - यह बात तू भलीभाँति समझ गया न? शुद्ध स्वरूप में आत्मा न स्थूल है, न सूक्ष्म । स्थूलता और सूक्ष्मता कर्मसापेक्ष है।
चेतन, तेरा दूसरा प्रश्न निम्न प्रकार है : 'यह देखा जाता है कि मनुष्य जन्मता है तब उस में ६ बातें स्वाभाविक पाई जाती हैं : आहार, शरीर, इंद्रिय, श्वासोच्छ्वास बोलना और सोचना। ये ६ बातें माता के उदर में ही तैयार होती है? उसके पीछे कौन से कर्म कारण होंगे?'
चेतन, कोई भी जीव, किसी भी गति में जीवन जीता है, उस जीवन में ६ बातें - ६ क्रियाएँ चलती रहती हैं। आहार करना, शरीर निर्माण होना, इंद्रियों की रचना होना, नियमित श्वासोच्छवास लेना, बोलना और मन से सोचना । हम अपने स्वयं में ये ६ बातें देखते ही हैं। इन ६ शक्तियों के सहारे ही अपना जीवन है। इन शक्तियों के बिना जीव जी नहीं सकता है। वह मर जाएगा।
हर जन्म में जीव को ये शक्तियाँ मिलती हैं। ये शक्तियाँ प्राप्त होती हैं 'पर्याप्ति-नाम कर्म' की वजह से। जीव यह ‘पर्याप्ति नाम कर्म' पूर्वजन्म से बाँधकर लाता है। जीव नई योनि (उत्पत्ति स्थान) में उत्पन्न होता है कि अल्प समय में ये शक्तियाँ प्रगट हो जाती हैं | परंतु सभी जीवों को ६ ही
शक्तियाँ प्राप्त हो वैसा नियम नहीं है। - जो एकेंद्रिय जीव होते हैं उनको १ से ४ पर्याप्ति प्राप्त होती हैं, - जो बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिंद्रिय जीव होते हैं उनको १ से ५ पर्याप्ति प्राप्त
होती हैं, - जो पंचेंद्रिय होते हैं उनको १ से ६ पर्याप्ति प्राप्त होती हैं। चेतन, पर्याप्ति वह शक्ति है, जिसके द्वारा जीव आहार, शरीर आदि के योग्य
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