________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
का उदय होता है, इसलिए वे एक जगह स्थिर रहते हैं।
- धूप में दुःख होने पर भी ये जीव छाँव में नहीं जा सकते, - शीत में दुःख होने पर भी ये जीव धूप में नहीं जा सकते। - कोई पृथ्वी को खोदता है, चीरता है... पृथ्वी के जीवों को दुःख होने पर
भी, पृथ्वी खिसक नहीं सकती है। - कोई पानी को अग्नि पर गर्म करता हैं... कोई पानी में नमक डालकर
उबालता है, पानी के जीवों को दुःख होने पर भी वे वहाँ ही रहते हैं। - कोई अग्नि के ऊपर पानी डालता है, कोई अग्नि को पैदा करता है, बुझाता
है... तब दुःख होता है, परंतु वे जीव स्थिर ही रहते हैं। - कोई मनुष्य वृक्ष को काटता है, पौधे को तोड़ता हैं, वनस्पति को काटता है... पशु वनस्पति खाते हैं... वनस्पति के जीवों को बहुत दुःख होता है,
परंतु वे जीव, एक जगह से दूसरी जगह नहीं जा सकते हैं। कारण है यह स्थावर-नामकर्म। - कैसा जालिम है यह कर्म | मनुष्य कभी जेल तोड़कर भाग सकता है, कभी ‘पीलबक्स' तोड़कर बाहर निकल सकता हैं... परंतु ये एकेंद्रिय जीव 'स्थावर नाम कर्म' की जेल नहीं तोड़ सकते। मर जाते हैं, परंतु इस कर्म को नहीं तोड़ सकते हैं।
कर्मों की पराधीनता का, कर्मों की क्रूरता का विचार करना चेतन! जीवसृष्टि पर कर्मों की कैसी क्रूर सत्ता है। दुनिया की दूसरी कोई भी सत्ता इतनी क्रूर नहीं है, जितनी कर्मों की सत्ता क्रूर है। __ पूर्ण ज्ञानी तीर्थंकर परमात्मा ने, इन एकेंद्रिय-जीवों की संपूर्ण कर्म-परवशता देखी थी। उनका हृदय करुणा से भरपूर था। उन्होंने संसार को उपदेश दिया
- पृथ्वी के जीवों को अपने स्वार्थ के खातिर दुःख नहीं दो, - पानी के जीवों को, अपने सुख के लिए दुःख मत दो, - अग्नि के जीवों को, अपनी सुविधा के लिए कष्ट मत दो, - वायु के जीवों को, अपने सुख के लिए वेदना मत दो,
२२०
For Private And Personal Use Only