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दुःख देती है।
- किसी के 'चोर दाँत' होता है, खाने में, चबाने में वह दाँत दुःख देता है। यह 'उपघात' नाम कर्म से होता है!
वैसे, कोई बँधता है, कोई पकड़ा जाता है, कोई गिर जाता है, कोई मर जाता है (अपनी इच्छा से) यह सब उपघात-नाम कर्म की वजह से होता है। उपघात करानेवाला यह कर्म है। मनुष्य अथवा पशु की स्वयं की हरकत से जो उपघात होते हैं, वे सभी इस कर्म की वजह से होते हैं।
चेतन, तेरे तीनों प्रश्नों के समाधान 'कर्मसिद्धांत' की दृष्टि से किए हैं। इस प्रकार दूसरे भी शरीर संबंधित प्रश्नों के समाधान करना।
चेतन, मनुष्य का नाक पाँव के साथ संलग्न क्यों नहीं है? और हाथ पृष्ठभाग के साथ जुड़े हुए क्यों नहीं है? जिस जगह जो अंगोपांग होने चाहिए, उस जगह ही क्यों अंगोपांग होते हैं?
तूने शायद सोचा होगा? इसका मूल कारण है 'निर्माण' नामकर्म। किस जीव को, शरीर में किस जगह अंगोपांग होने चाहिए, यह निर्णय 'निर्माण-नामकर्म' करता है। हर जीव का अपना-अपना यह नामकर्म होता है।
अंगोपांग का सर्जन अंगोपांग नामकर्म करता है, परंतु शरीर पर किस जगह कौन सा अंग होना, कौन सा उपांग होना, यह निर्णय यह 'निर्माण नामकर्म' करता है।
चेतन, एक दूसरी बात बताता हूँ -
हर जीव के श्वासोच्छ्वास चलते रहते हैं। मैंने पहले बताया है कि श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति-नामकर्म' श्वासोच्छवास-वर्गणा के पुद्गल ग्रहण कर, श्वासोच्छवासरूप परिणत करता है और श्वास लेने/ एवं छोड़ने योग्य
बनाता है, परंतु निश्चित समय में निश्चित संख्या में जीव जो श्वास लेता है और छोड़ता है, इस पर कौन नियंत्रण रखता है? ___ हाँ, किस जीव के कितने समय में कितने श्वासोच्छवास चलने चाहिए, उसके नियम होते हैं। शरीर की इस क्रिया पर श्वासोच्छ्वास नामकर्म का नियंत्रण रहता है। चेतन, श्वासोच्छवास पर्याप्ति और श्वासोच्छवास नामकर्म के कार्यों में जो
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