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पत्र :03
प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ। 'थीणद्धि निद्रा के विषय में तेरे मन में स्पष्टता हो गई, जानकर संतोष हुआ! तेरा नया प्रश्न निम्न प्रकार है
'जीवात्माओं के शरीर के विषय में बहुत सी जिज्ञासाओं का समाधान आपने किया, अभी कुछ जिज्ञासाएँ अवशिष्ट हैं, उनका भी समाधान मैं चाहता
१. कोई मनुष्य चलता है तो उसकी गति, उसका चलना अच्छा लगता है। अच्छी चाल के लिए 'गजगामिनी' 'हंसगति' वगैरह शब्द प्रयोग होते हैं। किसी मनुष्य का चलना अच्छा नहीं लगता है, इसका क्या कारण है?
२. किसी मनुष्य का शरीर भारी वजन का होता है, किसी मनुष्य का वजन कम होता है तो किसी मनुष्य का वजन न ज्यादा होता है, ना कम! इसका क्या कारण है?
३. कोई मनुष्य अपने ही शरीर के अवयवों से कष्ट पाता है, कोई स्वयं गिर जाता है... आत्महत्या कर लेता है... स्वयं अपने शरीर को दुःख देता है! इसका क्या कारण है?'
चेतन, तूने तीन प्रश्न किए हैं। तीनों प्रश्न के उत्तर 'कर्मसिद्धांत' के द्वारा देता हूँ। कर्म ही कारण होते हैं, तीनों प्रश्नों के।
तेरे पहले प्रश्न का कारण हैं 'विहायोगति' नाम कर्म।'
चेतन, पहली बात तो यह है कि सभी जीव चल नहीं सकते हैं। जो जीव 'स्थावर' होते हैं वे नहीं चल सकते हैं। 'त्रस-नाम-कर्म' के उदय से
जीवों में चलने की शक्ति आती है और ‘स्थावर-नाम-कर्म' के उदय से जीव चल नहीं सकते!
'त्रस-नाम-कर्म चलने की शक्ति देता है, परंतु चलने का तरीका देता है
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